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पल्लव और कादम्ब राजवंश।
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वहां जैनोंकी संख्या भी अत्यधिक थी। उनके सहयोगसे प्रभावित होकर कहा जाता है कि कलमोंने शैव धर्माचार्यों को दण्डित किया था। यह समय जैनधर्मके परम उत्कर्षका था। इसी समय प्रसिद्ध तामिलग्रन्थ 'नालदियार' जैनाचार्यों द्वारा रचा गया था। इस ग्रन्थमें दो स्थलों पर ऐसे उल्लेख हैं जिनसे पता चलता है कि कलम्र जैनधर्मानुयायी और तामिल साहित्यके संरक्षक थे। 'नालिदयार' ग्रन्थमें नीतिशास्त्र विषयक चारसौ पद मङ्कित हैं, जिन्हें चारसौ दिगम्बर जैन मुनियोंने रचा था। और माज जिनका प्रचार दक्षिण भारत के प्रत्येक घरमें हुआ मिलता है। कलभ्र राज्याश्रय पाकर जैनधर्म उनके समयमें खूब फूलाफला; परन्तु जब कदुन्गोन (Kadungon ) एवं पक्लव राजाओंने उनको राज्यश्री-विहीन कर दिया तो पांड्यदेशमें जैनोंके अभ्युदयको काठ मार गया। मदुरा जो उस समय तक जैनधर्मका मूल केन्द्रस्थान था, वह ब्राह्मणों के मधिपत्यको प्रगट करने लगा। बात यह हुई कि महेन्द्रवर्मन्की तरह पाण्डयनरेश जिनको
कुनमुन्दर मथवा नेदुमारन् पाण्ड्य कहते पाण्डयराज और थे, जैनधर्मसे विमुख हो गये । उनका विवाह जैनधर्म । चोल राजकुमारी रङ्गयरक सियरसे हुआ था,
___ जो शैव मतानुयायी और राजेन्द्र चोलकी बलन थी। शैवरानीने अपने गुरु तिरुज्ञानसम्बन्दरको बुला भेना और उन दोनोंके उद्योगसे पाण्ड्यगज शैव मतमें दीक्षित हो गये।
1-माइंजै०, भा० १ पृ. ५३-५६. २-साइजै०. पृ० ९२. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com