Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य श्लोकार्थ - इस युग में सर्वप्रथम सम्मेदशिखर की तीर्थयात्रा चक्रवर्ती
सगर ने की थी। हे राजन श्रेणिक! पृथ्वी पर सुप्रसिद्ध उस
कथा को तुम सुनो। पूर्वाख्योऽस्ति विदेहोऽत्र जम्बूद्वीपे महोत्तमः | तत्र सीता नदी रम्या दर्शनात्कल्मषापहा ।।११।। तस्या दक्षिणदिग्भागे वत्सास्यो देश उत्तमः ।
तत्र पृथ्वीपुरं धर्मवार्ताभिः सफलं कृतम् ।।१२।। अन्वयार्थ • अत्र = यहाँ, जम्बूद्वीये = जम्बूद्वीप में, महोत्तमः = अत्यधिक
उत्तम, पूर्वाग: विदेहः = पूर्व विदेह नामक, (क्षेत्र = क्षेत्र), अस्ति - है, तत्र = उस विदेह क्षेत्र में, दर्शनात् = दर्शन से, कल्मषापहा = पापों को दूर करने वाली, रम्या = रमणीय, सीता = सीता नाम वाली, नदी = एक नदी (अस्ति = है), तस्याः = उस नदी के, दक्षिणदिग्भागे = दक्षिणदिशारूपी भाग में, वत्साख्यः = वत्स नामक, उत्तमः = श्रेष्ठ, देशः = देश, (अस्ति = है), तत्र = उस देश में, पृथ्वीपुरं = पृथ्वीपुर नामक नगर, (अस्ति = है), (तत् = उसे), धर्मवार्ताभिः = धर्म सम्बन्धी चर्चाओं से, (तत्रत्यैः = वहां के, जनैः = लोगों द्वारा), सफलां
= फल युक्त या सार्थक. कृतम् - किया। श्लोकार्थ - इस जम्बूद्वीप में अत्यधिक उत्तम विदेह क्षेत्र है। उसमें सीता
नामक एक अत्यंत रम्या नदी है जिसके दर्शन से पाप दर होते हैं। उस नदी की दक्षिण दिशा में वत्स नामक एक श्रेष्ठ देश है जिसमें पृथ्वीपुर नगर है। जिसे वहाँ के लोगों ने धर्म
चर्चाओं से सफल कर दिया है। तत्र सम्यक्त्वसम्पन्नो जयसेनो महीपतिः।
धर्मभावः सदा यस्य सुबुद्धिः स महान् अभूत् ।।१३।। अन्वयार्थ - तत्र = पृथ्वीपुर में, सम्यक्त्वसम्पन्नः = सम्यग्दृष्टि, महीपतिः
= राजा, जयसेनः = जयसेन, यस्य = जिसका, धर्मभावः = धर्मभाव, सदा = हमेशा, (वृद्धिंगतोऽवर्तत = बढ़ता हुआ था).