Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तदशः
अन्वयार्थ
४८ १
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अत्र - इस सर्वार्थसिद्धि में, तस्य = उस अहमिन्द्र की आयुः = उम्र, त्रित्रिंशत् तेतीस सागरोपमं - सागर प्रमाण, अभवत = थी, च = और तत्र वहाँ उक्ताहारनिश्वासः = जितना कहा गया है उतने समय में आहार और निश्वास वाला, सार्द्धिः ऋद्धि सहित अनन्तसुखभुक् = अनन्तसुख को भोगता हुआ, च = और, सिद्धध्यानसंलीनमानस: सिद्धों के ध्यान में मग्न मन वाला, सः यह देव, हर्षतः हर्ष से, षट्कमासायुः = छह माह की आयु वाला. अभवत् उस दशा में देवगणैः देवों के समूह से, स्तुति किया गया। श्लोकार्थ – सर्वार्थसिद्धि में उस अहमिन्द्र की आयु तेतीस सागर प्रमाण थी वहाँ वह शास्त्र में कहे अनुसार आहार और श्वासोच्छ्वास लेने वाला अर्थात् तेतीस वर्ष में आहार तथा तेतीस पक्ष में श्वासेच्छ्वास लेने वाला हुआ। ऋद्धि सहित, अक्षीण सुख को भोगने वाले और सिद्ध भगवन्तों के ध्यान में मन लगाने वाले उस देव की मात्र छह माह आयु शेष रही तब उस अवस्था में देवताओं द्वारा वह स्तुत हुआ ।
तंत्र =
अथावतारचरितं वक्ष्ये तस्य महात्मनः । श्रवणात्पातकघ्नं यत् सर्वमङ्गलकारणम् ||२०||
अन्वयार्थ
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हुआ,
स्तुतः =
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अथ = अब, तस्य उस, महात्मनः = तीर्थङ्कर सत्वी महान् आत्मा अर्थात् देव के अवतारचरितं = सर्वार्थसिद्धि से अवतरित होने के चरित को, वक्ष्ये = कहता हूं, यत् = जो, श्रवणात् = सुनने से, पातक्रघ्नं पापों को नष्ट करने वाला, ( च = और), सर्वमङ्गलकारणम् = सारे मङ्गलों का कारण, ( अस्ति = है ) |
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श्लोकार्थ - अब मैं उस महान् आत्मा अर्थात् तीर्थङ्कर सत्ची अहमिन्द्र देव के अवतरित होने के चरित को कहता हूं। जिस चरित को सुनने से पापों का नाश होता है और जो सारे मङ्गल कार्यों का कारण है ।