Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 585
________________ विंशतिः उन्होंने). बसन्ते = बसन्तऋतु में, पुष्मितान् = फूले हुये, फलितान = फले हुये. द्रुमान् = वृक्षों को, ऐक्षत - देखा. ततः = उसके बाद, सरोवरे = एक तालाब में, नलिन = एक कमल को, दृशा = नेत्र से, मलिनं - म्लान होते, समीक्ष्य = देखकर, IN + और उसके आगे गर्म – सभी पदार्थों को. तद्वत् = उसके समान, विचारयन = विचार करते हुये. देवः = वह राजा, विरक्तः = वैराग्यसम्पन्न, अभूत् = हो गये। __ श्लोकार्थ - एक दिन वह राजा नमिनाथ प्रसन्न होने से स्वयं ही एक सुन्दर वन में चले गये उस वन में उन्होंने ही वसन्तागमन पर फले फूले वृक्षों को देखा और उसके बाद एक तालाब में अपनी आखों से एक कमल को म्लान होता देखकर तथा उसके समान ही सारे पदार्थ होते हैं ऐसा विचार करते हुये विरक्त हो गये। ततो लोकान्तिकैरीशः स्तुतः शक्रादिवन्दितः । मुदा विजयसेनाख्यामारुह्य शिबिकां वराम् ।।४२।। गत्वा तपोवनं शीघं राज्यं दत्वा स्वसूनवे | सहस्रावनिपैः सार्धमाषाढ़दशमी दिने ।।४३।। कृष्णपक्षे स्वयं दीक्षामगृहीत् विश्वनन्दितः । मनःपर्ययक्त्वं स लेभे तत्क्षणतो ध्रुवम् ।।४४।। अन्वयार्थ - ततः = उसके बाद, शीघं = शीघ्र ही, स्वसूनवे = अपने पुत्र के लिये, राज्य में राज्य को. दत्त्वा = देकर. लोकान्तिकैः = लोकान्तिक देवों द्वारा, स्तुतः = संस्तुत, (च = और). शक्रादिवन्दितः- इन्द्र आदि द्वारा नमस्कृत, ईशः = प्रभु, मुदा = प्रसन्नता से, वरां = श्रेष्ठ, विजयसेनाख्याम् = विजयसेन नामक, शिविकां = पालकी पर, आरुह्य = चढ़कर, तपोवनं = तपोवन को, गत्वा = जाकर, कृष्णपक्षे = कृष्णपक्ष में. आषाढदशमीदिने = आषाढ़ मास की दशमी के दिन, सहस्रावनिः = एक हजार राजाओं के, सार्ध = साथ, विश्वनन्दितः = विश्वनन्दि से, स्वयं = खुद ही, दीक्षां = मुनिदीक्षा को. अगृहीत् = ग्रहण कर लिया, तत्क्षणतः =

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