Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 606
________________ ५.२ _श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ . तदा = तभी, लौकान्तिकाः = लौकान्तिक देवों ने. आगत्य = आकर, कौमारावसरे = कुमारावस्था में, संसृतेः = संसार से, विरक्तं = विरक्त हये, प्रभु - प्रभु को, वीक्ष्य - देखकर, बहधा = अनेक प्रकार से, प्रभु = स्वामी की. तुष्टुवुः = स्तुति की। श्लोकार्थ - उसी समय लौकान्तिक देवों ने आकर प्रभु को कुमारावस्था में ही संसार से विरक्त जानकर देखकर अनेक प्रकार से उनकी स्तुति की। देवेन्द्रोऽपि तदा प्राप्तो जयनि?षमुच्चरन् । विमलां शिषिकां तस्य पुरस्कृत्य ननाम तम् ||३१11 अन्वयार्थ - तदा = उसी समय, (तत्र = वहाँ). प्राप्तः = उपस्थित हुये, देवेन्द्रः = इन्द्र ने, अपि = भी, जयनि?षम् = जयकार के घोष को, उच्चरन् = उच्चारते हुये, विमलां = विमला, शिबिका - पालकी को, तस्य = उन प्रभु के पुरस्कृत्य = सामने करके, तं = उनको, ननाम = प्रणाम किया। श्लोकार्थ - उसी समय वहाँ उपस्थित हुये इन्द्र ने भी जयकार करते हुये विमला नाम की पालकी प्रभु के समने रखकर उनको प्रणाम किया। तामारूह्य ततो देयः सहेतुकयनं तदा । सम्प्राप्तो मोक्षदीक्षायै वैराग्यश्रियमुद्बहन् ||३२|1 पौषकृष्णदशम्यां स त्रिशतैर्भूमिनायकैः । दीक्षा गृहीतवान्साधं तत्र मोक्षपदं सताम् ।।३३।। अन्वयार्थ - ततः = उसके बाद, वैराग्यश्रियम् = वैराग्य लक्ष्मी को. उद्वहन = धारण किये हुये, देवः = प्रभु, ताम् = उस पालकी पर, आरूह्य = चढ़कर, मोक्षदीक्षायै = मोक्ष दीक्षा के लिये. तदा = तभी, सहेतुकवनं = सहेतुक वन को, सम्प्राप्तः = प्राप्त हुये, तत्र = उस वन में, सः = उन्होंने, पौषकृष्णदशम्यां = पौषकृष्णा दशमी के दिन, त्रिशतैः = तीन सौ. भूमिनायकैः = राजाओं के, सार्धं = साथ, दीक्षां = मुनिदीक्षा को, गृहीतवान् = ग्रहण कर लिया। मोक्षपदं = मोक्षपद, सतां = सज्जनों-साधुओं के लिये, (भवति = होता है)। श्लोकार्थ . उसके बाद वैराग्य लक्ष्मी को धारण किये प्रभु इन्द्र द्वारा लायी

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