Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य भगवान् ने, कायोत्सर्ग = कायोत्सर्ग को. कृत्वा = करके, (च = और), सिद्धालये = सिद्धालय में, मनः = मन को. सम्यक = अच्छी तरह, नियोज्य = लगाकर, ततः = उसी सुदर्शनभद्र कूट से. त्रिशतैः = तीन सौ, मुनिभिः - मुनियों के, सह = साथ, तमेव = उसी सिद्धालय को, (आप्तवान् = प्राप्त कर
लिया)। श्लोकार्थ - उसके बाद उस सम्मेदशिखर पर्वत पर सुदर्शनभद्र (स्वर्णभद्र)
कूट को प्राप्त करके महान यतीश्वर जिन्होंने पहिले ही मोह शत्र को जीतकर जिनेन्द्र पदवी पायी ऐसे उन पार्श्वनाथ प्रभु ने कायोत्सर्ग करके और सिद्धालय में मन लगाकर उस ही
सिद्धालय को प्राप्त कर लिया। विशेष . अर्हन्त भगवान् अर्थात् जिनेन्द्र परमात्मा के भाव मन नहीं होता
है तशा ते केकतान से मानने हैं मन से नहीं अर्थात् "सिद्धालय में मन लगाकर* का अर्थ "सिद्धों के ध्यान से
समझना चाहिये। तत्पश्चाद्भावसेनाख्यो नृपस्सङ्घसमर्थकः ।
तधात्रां कृतवान् तस्य कथां यक्ष्येऽत्र पावनीम् ।।४४।। अन्वयार्थ - तत्पश्चात् = पार्श्वनाथ प्रभु के मोक्ष गमन के बाद,
सङ्घसमर्थक: = चतुर्विध संघ की पूजा करने वाले, भावसेनाख्यः = भावसेन नामक, नपः -- राजा ने, तधात्र = उस पर्वत की यात्रा, कृतवान् = की, अत्र = यहाँ, तस्य = उस राजा की, पावनी = पवित्र, कथां - कथा को, वक्ष्ये =
मैं कहता हूं। श्लोकार्थ - भगवान् पार्श्वनाथ के मोक्ष चले जाने के बाद चतुर्विध संघ
की पूजा करने वाले भावसेन नामक राजा ने सम्मेदाचल पर्वत की यात्रा की 1 मैं अब यहाँ उसकी पवित्र कथा को कहता
जम्बूमति शुभक्षेत्रे भारते चार्यखण्डके |
अनङ्गदेशेविख्यातः तत्र गन्धपुरी शुभा ||४५ ।। अन्वयार्थ - जम्बूमति = जम्बूद्वीप में, शुभक्षेत्रे = शुभक्षेत्र में, आर्यखण्डके
= आर्यखण्ड में, भारते = भारत में, अनङ्गदेशः = अनङ्ग