Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 618
________________ श्री सम्मेदशिखर माहात्मा माहात्म्यं = महत्त्व को, श्रुणुयात् = सुने, द्रव्यव्ययं = द्रव्य को खर्च. (अपि = भी), कुर्यात् = करे। श्लोकार्थ . सम्मेदशिखर पर्वत की यात्रा करने को उत्सुक भव्य जीव सर्वप्रथम निर्लोभी हो. फिर पर्वतराज के सम्यक् महत्त्व को सुने और द्रव्य का खर्चा भी करे। यात्रापत्रं प्रेषयित्वा प्रतिदेशं शुभाक्षरम् । अशेषभव्यजीवानां यात्रासूचकमुत्तमम् ।।६६।। श्रीमद्भगवतस्तुङ्गविमानं रचयेत्सुधीः । गजारूढ़ प्रभुं कृत्वा यात्रां कुर्यात् प्रयत्नतः ।।७।। अन्वयार्थ - अशेषभव्यजीवानां : सभी भव्य जीवों के, (कृले = लिये), प्रतिदेशं = प्रत्येक देश में, शुभाक्षरं = सुन्दर और शुम अक्षरों वाले, यात्रासूचकं = यात्रा विषयक पत्र, प्रेषयित्वा = भेजकर, सुधीः = बुद्धिमान श्रीमदभगवतः = श्रीसमान्न भगवान का तुङ्गविमानं = उत्तुङ्ग ऊँचा विमान, रचयेत् = बनाये या बनवाये, (च = और), प्रभु = भगवान् को. गजारूढ़ = हाथी पर आरूढ़, कृत्वा = करे, यात्रां = तीर्थवन्दना स्वरूप यात्रा को, प्रयत्नतः = प्रयास पूर्वक सावधानी से, कुर्यात् = करे । श्लोकार्थ · सभी भव्यजीवों के लिये प्रत्येक देश में शुभ और सुन्दर अक्षरों वाले यात्रासूचक उत्तम यात्रा निमन्त्रण पत्र को भेजकर बुद्धिमान् श्रीसम्पन्न भगवान के लिये एक उत्तुङ्ग विमान बनाये या बनवाये और फिर भगवान को हाथी पर आरूढ़ करके तीर्थवन्दना स्वरूप यात्रा को प्रयत्नपूर्वक सावधानी से करे। रथयात्रां तथा चेन्द्रध्वजादिशुभपूजनम् । तथा बिम्बप्रतिष्ठाञ्च प्रतिष्ठां गजपूर्विकाम् ||७१|| आदौ कृत्वा भवेद्यात्रा चाथवागत्य यत्नतः । आदावन्ते तथा कुर्याद्रथयात्रादिकं बुधः ।।७२।। अन्वयाथ - तथा च = और, प्रतिष्ठा गजपूर्विकां - गज प्रतिष्ठा पूर्वक, रथयात्रां = रथयात्रा को. बिम्बप्रतिष्ठा : जिन बिम्ब की प्रतिष्ठा को, तथा च = और, इन्द्रध्वजादिशुगपूजनम् = इन्द्र ध्वज आदि शुभ पूजन को, आदौ = प्रारंभ में, कृत्वा = करके,

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