Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 609
________________ एकविंशतिः ५८५ समी भव्य जीवों द्वारा स्तति किये गये, पजे गये और वन्दना किये गये प्रभु ने अपनी कृपा से सभी को देखा। विशेषार्थ - भगवान् के कृपाभाव नहीं होता है, तथापि काव्य चमत्कृति के कारण कवि ने कृपया शब्द का प्रयोग किया है। वे कमा भाव से नहीं केवलज्ञान से सभी को युगपत् जानते हैं। गणीप्रश्नात्प्रसन्नात्मा दिव्यध्वनिमथोदयन् । व्याख्यानं सप्ततत्त्वानां धकार परमेश्वरः ।।४।। अन्वयार्थ - अथ - इसके बाद, गणीप्रश्नात् = गणधरों के प्रश्न से, प्रसन्नात्मा = अनंत सुख से प्रसन्न आत्मा स्वरूप, परमेश्वर: :- भगवान ने, सप्ततत्त्वानां = सात तत्त्वों को, व्याख्यानं - विशेष, खुलासा स्वरूप कथन, चकार = किया। विहरन्पुण्यदेशेषु स्वेच्छया जगताम्पतिः । एकमासायुरुबुध्य सम्मेदोपर्यगात्प्रभुः ।।४१।। अन्वयाथ - गुणानेषु = पुणग क्षेत्रों अर्थात शुभ देशों में, स्वेच्छया = अपनी इच्छा से, विहरन् - विहार करते हुये, जगतां = तीनों लोकों के पतिः - स्वामी, प्रभुः = भगवान्, एकमासायुः = एक माह आयु को, उदबुध्य = जानकर, सम्मेदोपरि = सम्मेदशिखर पर्वत पर, अगात् = चले गये।। श्लोकार्थ - पुण्यशाली देशों या शुभ आर्य क्षेत्र के देशों में अपनी स्वाधीनता से विहार करते हुये तीनों लोक के अधिपति प्रभु पार्श्वनाथ एक माह आयु की अवशिष्टता जानकर सम्मेद शिखर पर्वत पर गये। सुदर्शनभद्रमासाद्य कूटं तत्र महायतिः । शुक्लध्यानयलाद्देवो पूर्वे मोहारिजितजिनः ।।४२।। कायोत्सर्ग ततः, कृत्वा त्रिशतैर्मुनिभि सह । सिद्धालये मनः सम्यक् नियोज्याथ तमेव सः ||४३।। अन्वयार्थ · अथ = उसके बाद, तत्र = उस सम्मेद पर्वत पर, सुदर्शनभद्रम् = सुदर्शनभद्र, कूट = कूट को, आसाद्य = प्राप्त करके. महायतिः = महान् यति. शुक्लध्यानबलात् = शुक्लध्यान के बल से, पूर्व - पूर्व में (हि = ही), मोहारिजितजिनः = मोहरूपी शुत्र को जीतने वाले जिनेन्द्र, सः = उन, देवः = पार्श्वनाथ

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