Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 604
________________ ५८० . समशिखर माहात्म्य उच्चारित करके. भूपमतेन = राजा की अनुमति से. सदेवः = देवताओं सहित, सः = वह, हरिः = इन्द्र. दिवम् = स्वर्ग को. अन्वगात = चला गया। श्लोकार्थ - सुमेरू पर्वत पर स्थित पाण्डुक शिला पर क्षीर सागर से लाये जल द्वारा विधिपूर्वक भगवान का अभिषेक करके तथा पुनः सुगन्धित जल से अभिषेक करके, दिव्य आभूषणों से उन्हें सुसज्जित करके वह इन्द्र पुनः वाराणसी आ गया। वहाँ राजा के आंगन में प्रभु को विराजमान करके हर्ष सहित उनकी पूजा करके, आश्चर्यकारी ताण्डव नृत्य करके उनका पार्श्वनाथ नाम रखकर, और जयघोष करके वह इन्द्र राजा की अनुमति से देवताओं सहित स्वर्ग चला गया। त्रियुक्ताशीतिसाहस्रसार्थेषु सप्तशतेषु । गतेष्वब्देषु नेमितो जिनात्पार्श्वेश्वरप्रभुः ।।२४।। तदन्तरायुः समभूत भक्तकल्याणदायकः । शतवर्षप्रमाणायुः सप्तहस्तोन्नतः तथा ।।२५।। अन्वयार्थ - नेमितः = नेमिनाथ, जिनात् = जिनेन्द्र से, त्रियुक्ताशीति साहस्रसार्धेषु सप्तशतेषु = तिरासी हजार साढ़े सात सौ, अब्देषु यः वर्ष, गतेषु = बीत जाने पर. तदन्तरायुः = उसके ही अन्दर आयु वाले, मक्तकल्याणदायकः = भक्तों को कल्याणकारक, शतवर्षप्रमाणायुः = एक सौ वर्ष प्रमाण आयु वाले, तथा = औ सप्तहस्तोन्नतः = सात हाथ उन्नत देह वाले. पार्श्वेश्वरप्रभुः = पार्श्वनाथ जिनेश्वर, समभूत् = उत्पन्न हुये। 'लोकार्थ - तीर्थङ्कर नेमिनाथ से तिरासी हजार साढ़े सात सौ वर्ष बीत जाने पर उसके अन्दर ही जिनकी आयु परिगणित है ऐसे भक्तों को कल्याण स्वरूप, सौ वर्ष की आयु वाले और सात हाथ ऊँची काया वाले पार्श्वनाथ जिनेश्वर हुये थे। कौमारकाले क्रीडार्थं गतो विपिनमेकदा । तत्रापश्यत् त्रिलोकेशः कमठाख्यं तपस्विनं ।।२६।। पञ्चाग्नितपसा तप्तं विशुद्धज्ञानयर्जितम् । जिनागमबहिर्भूतमासुरं तपसि स्थितम् ।।२७।।

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