Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य नमेर्मित्रधरं कूटं तत्र गत्वा प्रसन्नधीः ।
अष्टधा पूजया पूज्यं पूजयामास भक्तितः ।।६४।। अन्वयार्थ - तत्र = वहाँ, गत्वा = जाकर, प्रसन्नधीः = प्रसन्नचित्त राजा
गे, नमः = तीर्थकर नमिनाथ की, मित्रधरं = मित्रधर नामक, पूज्यं - पूज्य, कूटं = कूट को, शक्तितः = भक्तिभाव से, अष्टधापूजया = अष्टविधसामग्रीयुक्त पूजा से, पूजयामास =
पूजा अर्थात् उसकी पूजा की। 'लोकार्थ - उस सम्मेदशिखर पर्वत पर जाकर प्रसन्न चित्त उस राजा
ने नमिनाथ तीर्थङ्कर की पूज्य मित्रधरकूट की भक्तिभाव
से अष्टविधद्रव्य सहित पूजा सामग्री से पूजा की। स्तुति बहुविधां तस्य कृत्वा भव्यगुणान्वितः । दीक्षां तत्रैव सङ्गाह्य तपस्सन्तप्य चोत्तमम् ।।६५।। पञ्चचत्वारिंशदुक्तलक्षयुक्तार्बुदैर्युतैः। भव्यैः सह स पुण्यात्मा केवलावगमाद्भुताम् ।।६६।। शुक्लध्यानसमरुढ़ो जितमोहरिपुः कृती |
अनन्तानन्तसुखदां मोक्षसिद्धिभवाप्तवान् ।।६७ ।। अन्वयार्थ · भव्यगुणान्वितः = भव्य जीवों या भव्य गुणों से युक्त होते हुये,
सः = उस. पुण्यात्मा = पवित्र आत्मा राजा ने, तस्य = उस फूट की, बहुविधां = अनेक प्रकार, स्तुति = स्तुति को, कृत्वा = करके, तत्रैव = उस ही कूट पर, दीक्षा = मुनिदीक्षा को, सङ्ग्राह्य = लेकर, च = और, उत्तमं = सर्वोत्तम, तपः = तपश्चरण को, सन्तप्य = तप करके, शुक्लध्यानसमारूढः = शुक्लध्यान में संलग्न, जितमोहरिपुः = मोहरूपी शत्रु को जीतने वाले, कृती = कृतकार्य या प्रसन्न मुनिराज ने, पञ्चचत्वारिंशदुक्तलक्षयुक्तार्बुदैर्युतैः = पैंतालीस लाख अरब, भव्यैः = भव्यों के, सह = साथ, केवलावगमाद्भुतां = केवलज्ञान के चमत्कार वाली, अनन्तानन्तसुखदां = अनंत सुख को देने वाली, मोक्षसिद्धिं = मोक्षसिद्धि को, अवाप्तवान्
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