Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य पैतृक राज्यमापासौ राज्ये नीतिधरः सदा ।
प्रजाः ररक्ष धर्मेण पश्यंस्तासां विचेष्टितम् ।।३६ ।। अन्वयार्थ - अयं - यह तीर्थङ्कर नमिनाथ, पञ्चाधिकदशप्रोक्तैः
पन्द्रह, शरासनैः = धनुषों से, उन्नतः = ऊँचे, जाम्बूनदद्युतिः = सोने के समान कांति वाले, सहनदशकाब्दायुः = दश हजार वर्ष आयु वाले, (आसीत् - थ), तत्र = उसम, बालकेलीरतः - बालक्रीड़ाओं में लीन, प्रभुः = भगवान ने, सार्धद्विकसहस्राब्दं = ढाई हजार वर्ष पर्यन्त, कौमार्य -- कुमारकाल को, सम्यक् = अच्छी तरह से. व्यतीत्य = बिताकर, यौवनाभिगमे = यौवन के आने पर, पैतृक = पैतृक, राज्यं = राज्य को, आप = प्राप्त किया. तदा = तब, असौ = उन्होंने, तासो = प्रजाजनों की, विचेष्टितम् = चेष्टाओं को, पश्यन् = देखते हुये, सदा = हमेशा, राज्ये = राज्य पालन में, नीतिधरः = नीति का पक्ष लेते हये. धर्मेण = धर्म
से. प्रजाः = प्रजा की, ररक्ष - पालन किया। श्लोकार्थ - यह तीर्थङ्कर नमिनाथ पन्द्रह धनुष उन्नत काय वाले स्वर्ण
समान कान्तिवाले और दश हजार वर्ष आयु वाले थे। बालक्रीडाओं में रत उन प्रभु ने ढाई हजार वर्ष पर्यन्त कौमार्य काल को अच्छी तरह से बिताकर युवावस्था आने पर पैतृक राज्य प्राप्त कर लिया। तब उन्होंने प्रजा जनों की चेष्टाओं को देखते हुये तथा राज्य संचालन में नीति को धारण किये
हुगे धर्मपूर्वक प्रजा का पालन किया उनकी रक्षा की। एकदा स प्रभुर्मोदागम्यं वनमगात्स्वयम् । बसन्ते पुष्पितान् तत्र फलितानैक्षत दुमान् ।।४०।। ततः सरोवरे देवो नलिनं मलिनं दृशा।
समीक्ष्याथ विरक्तोऽभूत् तद्वत्सर्वं विचारयन् ।।४।। अन्वयार्थ - एकदा = एक दिन, सः = वह. प्रभुः - राजा नमिनाथ, स्वयं
= स्वयं ही, मोदात् = प्रसन्न होने से, रम्यं = सुन्दर, वनं = वन में, अगात् = चले गये, तत्र = उस वन में, (सः =