Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
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= देवताओं सहित, पुरुहूतः इन्द्र तत्र = वहाँ. ( आगतः = आया), च = और, तं उन, जगत्प्रभुं = तीर्थङ्कर प्रभु को, प्रेम्णा प्रेम से, समादाय = लेकर स्वर्णशैलेन्द्रं = सुमेरूपर्वत पर गतवान् = गया, तत्र सुमेरू की पाण्डुकशिला पर तं = उन विभुं प्रभु को संस्थाप्य = सुस्थापित करके पापों में स्थित श्रीरसिन्धुः =
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क्षीरसागर जनित वार्भिः : = जल से, विधिना
विधिपूर्वक,
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अस्नापयत् = स्नान कराया । श्लोकार्थ प्रभु के जन्म को जानकर ही जयध्वनि को उच्चारते हुये देवताओं सहित इन्द्र वहाँ आ गया और प्रेम से जगत्प्रभु तीर्थकर भगवान् को लेकर वह सुमेरू पर्वत पर चला गया । यहाँ पाण्डुकशिला पर उन प्रभु को स्थापित करके घटों में स्थित क्षीरसागर के जल से प्रभु का स्नान या अभिषेक किया। ततो गन्धोदकस्नानं समाप्याथ विभूष्य च । कृत्वा तं स्वाङ्कगं भूपं प्रापयन्मिथिलां हरिः ।।३३।1 अन्वयार्थ ततः = उसके बाद, गन्धोदकस्नानं सुगन्धित जल से स्नान को, समाप्य = पूर्ण करके, अथ च = और, विभूष्य = अलंकारों = : से विभूषित करके, तं उन भूपं तीर्थङ्कर शिशु राजा को. स्वाङ्कगं = अपनी गोद में बैठाया हुआ, कृत्वा = करके, हरि: = इन्द्र, मिथिलां= मिथिला नगरी को प्रापयत् = प्राप्त हुआ ।
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श्लोकार्थ - उसके बाद अर्थात् क्षीर सागर के जल से स्नान या अभिषेक हो जाने के बाद पुनः प्रभु का सुगन्धित जल से अभिषेक करके और उन्हें वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करके इन्द्र उन शिशु राजा को अपनी गोद में बिठाकर मिथिला नगरी में आ गया 1 नृपाङ्गणे तभारोप्य पुनः सम्पूज्य भक्तितः । पुरस्तत्र ताण्डवं कृत्वा प्रसाद्याखिलमण्डलं ||३४|| नमिनाथाभिधां कृत्वा तस्य त्रिज्ञानधारिणः । मतेन भूभृतः स्वर्गं जगाम स सुरर्षभः ।। ३५ ।।
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