Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तदशः
आम के पेड़ के नीचे, केवलज्ञानम् = केवलज्ञान को, आप्तवान्
- प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ – वह मुनिराज दूसरे दिन भिक्षा के लिये चक्रपुर नगर में आ
गये यहाँ प्रसन्नचित्त राजा अपराजित ने श्रद्धापूर्वक उन्हें भोजन कराया और पंचाश्चर्यों को देखने से हर्ष से पुष्ट उस राजा द्वारा वह मुनिराज बार बार प्रणाम किये गये। कृपा से भीगी दृष्टि द्वारा उस राजा को देखकर पुनः वन में आकर, सोलह वर्ष तक कठिन तपश्चरण करते हुये अल्पज्ञानी उन मुनिराज ने अत्यंत पैनी या तीक्ष्ण तप रूपी तलवार से चारों म्यातियाँ कमों का संहार करके कार्तिक सुदी बारह के दिन
आम के पेड़ के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया । तदा समवसारेऽथ शक्रादिसुरनिर्मिते । यथोक्त्तकुन्थुऽसेनादिज्वलद्वादशकोष्टके ||५०।। बहुशोभासभायुक्ते स्थितोऽयं जगदीश्वरः ।
दिव्यघोषेण सम्पृष्टो भच्यैः सुकृतमुज्जगौ ||५१।। अन्वयार्थ – अथ = इसके बाद, तदा = तभी, शक्रादिसुरनिर्मिते = इन्द्र
आदि देवताओं द्वारा निर्मित, यथोक्तकुन्थुऽसेनादिज्वलद्द्वादश कोष्टके = जैसे कहे गये हैं उन कुन्थुसेन आदि गणधरों एवं अन्य भव्यजीवों से शोभित बारह कोठों वाले, बहुशोभासभायुक्ते = अनेकविधशोभा वाली धर्मसगा से युक्त, समवसारे - समवसरण में स्थितः = विराजमान, अयं - यह, जगदीश्वरः = जगत् के प्रभु तीर्थङ्कर अरनाथ, भव्यैः = भव्यजीवों द्वारा. सम्पृष्टः = पूछे गये, (तदा = तब), दिव्यघोषेण = दिव्यध्वनि द्वारा, सुकृतं = धर्मोपदेश या पुण्योपदेश को. उज्जगौ = उत्कृष्टतया और सुविशद रूप
से कहने लगे। श्लोकार्थ – केवलज्ञान होने के बाद उसी समय इन्द्र आदि देवों द्वारा
रचे गये व जैसा क्रम कहा गया है तदनुसार कुन्थुसेन आदि गणधरों एवं भव्य जीवों से शोभित बारह कोठों वाले तथा उनेक प्रकार की शोभा से युक्त धर्मसभा रूप समवसरण में