Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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विशतिः
हुये अहमिन्द्र हुये। त्रित्रिंशत्सरिदीशायुः तत्रासौ सुखसम्प्लुतः।
तत्रोक्ताहारनिश्वासः सर्वकार्यक्षमोऽभवत् ।।१७।। अन्वयार्थ - तत्र = वहाँ सर्वार्थसिद्धि में, असौ = वह अहमिन्द्र,
त्रित्रिंशत्सरिदीशायुः तेतीस सागर आयु वाला, सुखसम्प्लुतः = सुख से पूर्ण. तत्रोक्ताहारनिश्वासः = सर्वार्थसिद्धि में शास्त्रोक्त आहार और श्वासोच्छवास लेने वाला, (च = और). सर्वकार्यक्षमः = सारे कार्यों को करने में समर्थ, अभवत् =
हुआ।
श्लोकार्थ - सर्वार्थसिद्धि में वह अहमिन्द्र तेतीस सागर की आयु वाला.
सुख से परिपूर्ण सभी कार्यों को करने में समर्थ तथा शास्त्रोक्त
कथन के अनुसार आहार और श्वासोच्छवास लेने वाला हुआ। तत्रोच्चरन् सः धर्मान हि सिध्यानकृतादरः ।
षण्मासियावशिष्टायुः तस्थौ जिदीरवः ।।१८।। अन्वयार्थ - तत्र = वहाँ, धर्मान् = धर्मों को. उच्चरन् = उच्चारते हुये.
सिद्धध्यानकृतादरः = सिद्धों के ध्यान में आदर करने वाला, त्रिजगदीश्वरः = तीनों लोकों का स्वामी तीर्थङ्कर होने वाला, सः : वह देव, षण्मासिकावशिष्टायुः = छह माह की
अवशिष्ट आयु वाला. तस्थौ = हुआ। श्लोकार्थ - सर्वार्थसिद्धि में धर्मों की चर्चा करते हुये और सिद्ध भगवन्तों
का आदर सहित ध्यान करते हुये तीनों लोक के स्वामी स्वरूप तीर्थंकर का जीव वह देव मात्र छह माह की शेष आयु वाला हुआ। तस्यावतारचरितं श्रवणात्पठनाद् ध्रुवम् ।
सर्वकार्यकरं वक्ष्येऽधुनाहं सिद्धये सताम् ।।१६।। अन्वयार्थ - अधुना = अब. अहं = मैं, सतां = सज्जनों की, सिद्धये =
सिद्धि के लिये. श्रवणात् = सुनने से, (च = और), पठनात् = पढ़ने से, ध्रुवं = निश्चित ही, सर्वकार्यकरं = सारे कार्यों को करने वाले, तस्य = उस अहमिन्द्र के. अवतारचरितं =