Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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ली सम्मेदशिखर माहात्म्य मुनि दृष्ट्वा प्रसन्नात्मा दण्डवत् प्रणिपत्य तम् ।। विधिवत्पूजयामास गन्धाद्यैर्भक्त्तितो नृपः ।।१०।। अन्वयार्थ - मुनि = मुनिराज को. दृष्ट्वा = देखकर, प्रसन्नात्मा = प्रसन्न
मन, नृपः = राजा ने, तं = उनको, दण्डवत् = झुककर, प्रणिपत्य := प्रणाम करके, भक्तितः = भक्ति से, गन्धाद्यैः = गन्ध आदि से, विधिवत् - विधिपूर्वक. पूजयामारर = पूजा
की। श्लोकार्थ - मुनिराज को देखकर प्रसन्नचित्त राजा ने उन्हें दण्डवत प्रणाम
करके भक्ति गाव से गंध आदि द्वारा उनकी विधिपूर्वक पूजा की। समगृज्य धर्म एप साखन्डित
तदा मुनिवरः प्राह यथावत्तान्स्वतत्त्ववित् ।।११।। अन्वयार्थ - सम्पूज्य = मुनिराज को अच्छी तरह से पूजकर,
संसारामयखण्डितं :- संसार रूपी रोग को खण्ड-खण्ड करने वाले, धर्म - धर्म को, पपृच्छ :- पूछा, तदा = तब, स्वतत्त्ववित् = निजतत्त्व के ज्ञाता तत्वज्ञानी, मुनिवरः = मुनिराज ने, यथावत् = यथार्थ. तान् = धर्म का स्वरूप एवं पालन करने
के उपायों को. प्राह = कहा। श्लोकार्थ - राजा ने मुनिराज को अच्छी तरह से पूजकर संसार रूपी रोग
को नष्ट करने वाले धर्म को पूछा। तब निजतत्ववेत्ता तत्त्वज्ञानी मुनिराज ने यथार्थ रूप से धर्म का स्वरूप और
उसका पालन करने के उपायों को कहा। श्रुत्वा विरक्तिमापन्नः संसारात्स महीपतिः ।
दत्त्वा राज्यं स्वपुत्राय. तत्क्षणाद् दीक्षितोऽभवत् ।।१२।। अन्वयार्थ - श्रुत्वा = मुनि के धर्मोपदेश को सुनकर, संसारात = संसार
से, विरक्तिं = विरक्ति को, आपन्नः = प्राप्त हुआ, सः = वह महीपतिः = राजा, स्वपुत्राय = अपने पुत्र के लिये. राज्यं = राज्य, दत्वा = देकर, तत्क्षणात् = उसी समय, दीक्षितः = दीक्षित, अभवत् = हो गया।