Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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एकोनविंशतिः अन्ययार्थ - यस्मात् = जिस, कूटात् = कूट से, श्रीमुनिसुव्रतः = तीर्थङ्कर
मुनिसुव्रतनाथ, अनन्तसुखभूमिम् = अनन्त सुखों की भूमि स्वरूप मुक्ति को, उदगात् = ऊर्ध्वगति से चले गये, तं = उस. नटरी ... य जीवोदार, अनिशं = सदा, वन्दितम् = वन्दनीय. निर्जरकूट = निर्जरकूट को, (अहं = मैं), भक्त्या
= भक्ति से, नमामि = प्रणाम करता हूं। श्लोकार्थ - जिस कूट से तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ अनन्त सुखों की शरण
भूमि मुक्ति को चले गये और जो सतत भव्यों द्वारा वन्दनीय
है ऐसी निर्जर कूट को मैं प्रणाम करता हूं। (इति श्रीदीक्षितब्रह्म नेमिदत्तविरचिते श्रीसम्मेदशिखरमाहात्म्ये तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ वृतान्तसमन्वितं निर्जरकूट वर्णनं
नामैकोनविंशतितमोऽध्यायः समाप्तः ।} (इस प्रकार श्री दीक्षितब्रह्म नेमिदत्त द्वारा रचित श्री सम्मेदशिखर माहात्य काव्य में तीर्थङ्कर मुनिसुव्रतनाथ के वृतान्त से
युक्त निर्जरकूट का वर्णन करने वाला उन्नीसवां अध्याय समाप्त हुआ।