Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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अष्टदश
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एक माह मात्र है आय जिनकी ऐसे वह, भूमिस्थं = भूमि पर
स्थित, स्वर्णपर्वतम् = सोनागिरि पर, उदगात् = पहुंच गये। श्लोकार्थ - वह प्रभु दिव्य ध्वनि का उच्चारण करते हुये और पुण्य क्षेत्रों
में विहार करते हुये जब एक माह मात्र अवशिष्ट आयु वाले
हुये तो सोनागिरि पर्वत पर आ गये। किञ्चित्कालं तत्र देवः स्थित्वा चित्तं प्रसाद्य सः । समुत्सव गतस्तस्मात् सम्मेदं ध्वनियर्जितः ।।५।। कूटं सम्बलनामानं तत्रासाद्य जगद्गुरुः ।
द्वादश्यां फाल्गुने मासे कृष्णायां सिद्धतामगात् ।।५२।। अन्वयार्थ - सः = वह. देवः = प्रभु. किञ्चित्कालं = थोड़े समय, तत्र =
उस सोनागिरि पर स्थित्वा = होकर, (भव्यानां = भव्य जीवों के), चित्तं = मन को. प्रसाद्य - प्रसन्न करके. (च = और), समुत्स य = उत्साहित करके, ध्वनिवर्जितः = दिव्यध्वनि से रहित होते हुये, तस्मात् = वहाँ से, सम्मेदं = सम्मेदशिखर पर्वत को, गतः = गये. तत्र = उस सम्मेदगिरि पर, सम्बलनामानं = सम्बलनामक, कूटं = कूट को, आसाद्य = प्राप्त करके. जगद्गुरूः = जगद् के गुरू भगवान् मल्लिनाथ, फाल्गने = फालान, मासे - मास में, कृष्णायां = कृष्णा, द्वादश्यां = द्वादशी को, सिद्धतां = सिद्धत्व को, अगात् =
प्राप्त किये अर्थात् सिद्ध शिला पर चले गये।। श्लोकार्थ - वह प्रभु कुछ समय उस सोनागिरि पर स्थित होकर भव्यों के
मन को प्रसन्न करके और उत्साहित करके, दिव्यध्वनि से रहित होते हुये वहाँ से सम्मेद पर्वत पर चले गये तथा वहाँ सम्बलनामक कूट को प्राप्त करके जगद्गुरू भगवान् मल्लिनाथ फालान बदी बारस के दिन सिद्ध दशा को प्राप्त हो गये। अथ चम्पापुरे राजा सम्बलाख्यो महानभूत् ।
महासेना तस्य राझी शीलसद्गुणसुन्दरी ।।३।। अन्वयार्थ - अथ = प्रारंभ सूचक अव्यय, चम्पापुर. = चम्पापुर में.