Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य से, गुणसागरः = गुणों का सागर, तत्त्वसेनाख्यः = तत्त्वसेन
नामक, पुत्र: := पुत्र, अभूत् = हुआ। श्लोकार्थ - जम्बूद्वीप में योधदेश के अत्यधिक आनन्दकर श्रीपुर नगर में
अम्बदेश एक अत्यधिक धार्मिक राजा हुआ था। उसकी रानी विजया थी। जिसके गर्भ में वह देव स्वर्ग से च्युत होकर आया
और गर्भ के नौ माह पूरे हो जाने से तत्त्वसेन नामक गुणवान् पुत्र हुआ। सदा पुण्यरूविधीमान् प्रतापेणाक्रसन्निभः । इष्टमन्त्रजपाच्चक्री रहस्येकानमानसः ।।६०।। एकस्मिन् समये तत्त्वसेन एष यदृच्छया ।
कौसलाख्यं गिरिवरं गतः सुरनिषेवितम् ।।६।। अन्वयार्थ - एषः = यह. सदा = हमेशा. पुण्यरूचिः = पुण्याभिलाषी.
धीमान् = बुद्धिमान, प्रतापेण = प्रताप या तेज से, अक्रसन्निमः = सूर्य के समान, चक्री = चक्रवर्ती, इष्टमन्त्रजपात् = इष्ट मंत्र के जपने से, रहसि = एकान्त में, एकाग्रमानसः = ध्यान करने वाला. तवसेनः = तत्त्वसेन राजा, एकस्मिन् = एक, समये = समय, यदृच्छया = अपनी स्वेच्छा से. सुरनिषेवितं -- देवताओं द्वारा सेवनीय पूजनीय, कौसलाख्यं = कौसल
नामक, गिरिवरं = पर्वतराज पर, गतः = गया। श्लोकार्थ - सदैव पुण्याभिलाषी, बुद्धिमान = प्रतापी, सूर्य के समान
तेजस्वी, चक्री तथा इष्टमंत्र के जाप वाला होने से ध्यान करने वाला यह राजा तत्त्वसेन एक दिन स्वेच्छा से देवों के लिये
सेवनीय पूजनीय कौसल नामक श्रेष्ठ पर्वत पर गया । तत्र सुलोचनमुनिं दृष्ट्वा भक्त्या चाभिवन्ध तम् ।
सम्मेदशैलचर्चा यै तेन सार्धं चकार सः ।।६२ ।। अन्वयार्थ · तत्र = उस कौसलपर्वत पर, सुलोचनमुनि = सुलोचन नामक
मुनिराज को. दृष्ट्वा = देखकर, च = और. भक्त्या = मक्ति से, तं = उनको, अभिवन्द्य = प्रणाम करके, सः = उस राजा ने, तेन = उन मुनिराज के. सार्धं = साथ, वै = यथार्थ