Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तदश
४६७
से, देवः
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देव, अभूत् = हो गया, ततः = उस
अपने पुण्य स्वर्ग से, सः वह देव जम्बूमति जम्बू वृक्ष वाले, महाद्वीपे क्षेत्र में, विशाल द्वीप में, भारते सुरम्य
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- भरत, क्षेत्रे देशे = सुरम्य देश में, च और पोदनाख्यपुरे पोदनपुर नामक शुभे= सुन्दर, (नगरे नगर में), च्युतः = च्युत हुआ, गुणाम्बुधेः = गुणों के सागर श्रीसेनस्य = श्रीसेन नामक, भूपस्य = राजा की श्रीमती राग्या = श्रीमती नामक रानी से, पुत्रः पुत्र, बभूव वह), सुप्रभाख्यः = हुआ, (सः सुप्रभनामक सद्बुद्धिः सुबुद्धि का धारक महाप्रभुः सामर्थ्यशाली, सकलविद्यानां सारी विद्याओं को पढ़ने वाला, भूमिमण्डले पृथ्वीतल पर प्रसिद्धः = विख्यात, (आसीत् = था), सुप्रभाख्यः = सुप्रभ नामक सदबुद्धिः सुबुद्धि का धारक महाप्रभुः सामर्थ्यशाली, सकलविद्यानां = सारी विद्याओं को पढने वाला, भूमिमण्डले पृथ्वी तल पर प्रसिद्धः = विख्यात, ( आसीत् = था ) ।
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समये
एकदा
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श्लोकार्थ उन्होंने वन में घोर संयम के पालनकर्ता मुनि होकर तपश्चरण किया। उस तप के प्रभाव से तपःपूत शरीर को छोड़कर वह अपने पुण्य से सोलहवें स्वर्ग में जाकर देव हो गये। फिर उस स्वर्ग से वह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सुरम्य नामक देश के सुन्दर पोदनपुर नामक नगर में च्युत होते हुये गुणों के सागर श्रीषेण नामक राजा की श्रीमती रानी से पुत्र उत्पन्न हुये । वह सुप्रग नामक पुत्र सुबुद्धि सम्पन्न महान् सामर्थ्यशाली और सारी विद्याओं का जानकर के रूप में पृथ्वी पर प्रसिद्ध हुआ था ।
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भूपतां प्राप्य रराज मघवेव सः । चारणेनाथ भुनिना भुनिना सह भूभृतः । ।७० ।। संगमोऽस्याभवच्चैनमपृच्छच्च भूपतिरसौ । त्रिलोक्यां भो मुने तत्किं यन्न जानासि तत्वतः । ७१ ।। तस्मान्निवार्णमार्ग में दर्शयाद्य दयानिधे । मोक्षोपायप्रधानां सः यात्रां साम्मेदिक तदा ||७२||