Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अनन्तनाथाद् गच्छत्सु चतुर्वार्धिषु स प्रभुः ।
तन्मध्ये जीवी धर्माख्य नाथः समभवत्किल ।।२७।। अन्वयार्थ - अननतनाथात् = तीर्थङ्कर अनंतनाथ से, चतुर्वाधिषु = चार
सागर, गच्छत्सु - चले जाने पर, तन्मध्ये = उसके मध्य में, जीवः = जीवन काले, नाथः = धर्मनाथ नामक, सः
= वह, प्रभुः - तीर्थङ्कर, समभवकिल = हुये। श्लोकार्थ- तीर्थङ्कर अनंतनाथ के मोक्ष जाने के बाद चार सागर का
काल बीत जाने पर तीर्थङ्कर धर्मनाथ हुये वे उक्त काल के अन्तर्जीवी हुये थे अर्थात् अनंतनाथ के मोक्ष जाने के बाद चार सागर बीतने पर तीर्थङ्कर धर्मनाथ मोक्ष चले गये। दशलक्षाष्टगीलायुः उत्सेधस्तस्य सत्तनोः ।
पञ्चचत्यारिंशदुक्तधनुर्मित उदाहृतः ।।२८।। अन्वयार्थ - तस्य = उनकी, दशलक्षाष्ट्रगीतायुः = दस लाख आठ वर्ष
कही गयी आयु, सत्तनोः = सुन्दर शरीर की, उत्सेधः = ऊँचाई, पञ्चचत्वारिंशदुक्तधनुर्मितः = पेंतालीस धनुष प्रमाण,
उदाहृतः = कहीं गयी है। श्लोकार्थ - उनकी अर्थात् तीर्थङ्कर धर्मनाथ की आयु दस लाख आठ
वर्ष और उनके शरीर की ऊँचाई पेंतालीस धनुष प्रमाण
शास्त्रों में कही गयी है। मोदयित्वा स कौमारे पितरौ भाग्यसागरौ ।
तारूण्ये पैतृकं राज्यं प्राप्य शर्क रूचाजयत् ।।२६।। अन्वयार्थ · सः = उन्होंने. कौमारे = कुमारावस्था में, भाग्यसागरौ =
अतिशय भाग्य वाले, पितरौ = माता पिता को, मोदयित्वा = प्रसन्न करके, (च = और), तारूण्ये = तरूणावस्था में, पैतृकं = पिता के, राज्यं = राज्य को, प्राप्य = प्राप्त करके, रूचा
= अपने तेज से, शक्र = इन्द्र को, अजयत् = जीत लिया। श्लोकार्थ - उन्होंने कुमारावस्था में अतिशय माग्य वाले माता-पिता को
प्रसन्न करके और तरूणावस्था में पैतृक राज्य प्राप्त करके अपने तेज से इन्द्र को जीत लिया।