Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ - जम्बूमति - जम्बूवृक्ष वाले, महाद्वीपे = विशाल ट्वीप में, पूते
= पवित्र, पूर्व विदेहके = पूर्व विदेह में, सीतायाः = सीता नाम की, सरिदुत्तरे = नदी के उत्तर में, कच्छनामक = कच्छ नामक, महादेशः = महान देश, अस्ति - है (था), तथा = तथा. अत्र - इस देश में, सदा = हमेशा, षट्कर्मनिरताः = छह आवश्यक कर्मों में लगे हुये, भव्याः = भव्य जीव, मोक्षं = मोक्ष को, यान्ति = जाते हैं, च = और. नित्यं = सदैव, यास्यन्ति = जाते रहेंगे, तत्र = उसमें, संशयः = सन्देह, न
= नहीं, अस्ति = है। श्लोकार्थ - जम्बू नामक विशाल द्वीप में स्थित पवित्र पूर्व विदेह क्षेत्र में
सीता नदी के उत्तर भाग में कच्छ नामक एक विशाल दश था। उस देश में हमेशा छह आवश्यक कर्मों को करते हुये भव्य जीव मोक्ष जाते हैं और नित्य मोक्ष जाते रहेंगे। उसमें
कोई संशय नहीं है। तत्र क्षेमपुरं दिव्यं धनधान्यसमृद्धिभिः ।
पूर्ण पुण्यजनाकीर्ण शोभते स्यरूचा सदा ।।५।। अन्वयार्थ – तत्र = उस कच्छ देश में. पुण्यजनाकीर्ण = पुण्यात्मा लोगों
से भरा, दिव्यं - दिव्य अर्थात् प्रकाश के समान धवल, (च = और), धनधान्यसमृद्धिभिः = धनधान्य की समृद्धि से, पूर्ण -- परिपूर्ण, क्षेमपुरं = क्षेमपुर नामक नगर, सदा = हमेशा, स्वरूचा = अपनी उज्ज्वल कान्तिरूप शोभा से, शोभते =
सुशोभित होता है या था। श्लोकार्थ – उस कच्छ देश में पुण्यात्मा लोगों से भरा प्रकाश के समान
चमकता धवल और धन धान्य आदि से पूर्णतः समृद्ध क्षेमपुर नामक नगर सदैव आपनी उज्ज्वल कान्ति से सुशोभित होता
था। तस्य राजा धनपतिः बभूव सुकृतालयः ।
धनसेना तस्य राझी रूपराशिरिवोज्ज्वला ।।६।। अन्वयार्थ – तस्य = उस क्षेमपुर का. सुकृतालयः = पुण्यात्मा, धनपतिः