Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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चतुर्दश
४०५ भक्ति से, स्कन्धम् - स्कन्ध पर. आरोप्य = आरोपित करके. विद्याधरैः = विद्याधर. नृपैः = राजाओं द्वारा, सप्त-सप्त = सात-पात, 'ग्दानि = पद अनि मद्धम नचाल :- चलायी गयी, तथा हि = वैसे ही, सः = वह, देवैः = देवों द्वारा, स्तुतः -- स्तुत होता हुआ, लवणाख्यं = लवण नामक, वनं - वन
को, समुपाययौ = पहुँच गया। श्लोकार्थ - तभी जगत् के स्वामी धर्मनाथ राज्य अपने पुत्र के लिये
सौंपकर, देवों द्वारा लायी गयी नाभिदत्त नामक श्रेष्ठ पालकी पर चढ़कर देवों द्वारा स्तुति किया जात हुआ लवण नामक वन में पहुँच गये। उनकी वह पालकी जयध्वनि बोलते हुये देवों द्वारा ढोयी गयी किन्तु भक्ति के कारण वह पालकी सात--सात काम विद्याधर राजाओं और उनके द्वारा कन्धों पर आरोपित करके घलायी गयी थी। माघशुक्लत्रयोदश्यां पुष्यः भव्यभूमिपैः ।
सहस्रप्रमितैस्साधू दीक्षां जग्राह तदने ||३८।। अन्वयार्थ - माघशुक्लत्रयोदश्यां = माघशुक्ला त्रयोदशी के दिन, पुष्यः
== पुष्य नक्षत्र में, सहस्रप्रमितैः - एक हजार संख्या प्रमाण, भव्यभूमिपैः = भव्यराजाओं के, सार्ध = साथ, (सः = उन्होंने), तहने = उस लवण कन में, दीक्षा = मुनिदीक्षा को, जग्राह
= ग्रहण कर लिया। श्लोकार्थ - माघ शुक्ला तेरस के दिन पुष्य नक्षत्र में एक हजार राजाओं
के साथ उन्होंने उसी लवण वन में मुनिदीक्षा को ग्रहण कर लिया। त्रिज्ञानस्वामिनस्तस्य चतुर्थज्ञानमुत्तमम् ।
तदैयाविरभूदन्तर्मुहूर्ते जगर्दाशितुः ।।३६।। अन्वयार्थ - तदैव = तब ही अर्थात् दीक्षा ले लेने पर ही, अन्तर्मुहूर्ते = ।
एक अन्तर्मुहूर्त में, त्रिज्ञानस्वामिनः = तीन ज्ञान के स्वामी, तस्य : उन. जगदीशितुः = जगत् के ईश मुनिराज के. उत्तमम् = उत्तम या श्रेष्ठ, चतुर्थज्ञानम् = चौथा मनःपर्ययज्ञान, आविः = उत्पन्न, अभूत् = हो गया।