Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य तत्रोक्ताहारनिश्वाससम्प्राप्तपरिपूरितः।
सिद्धान्यवन्द तद्ध्यात्वा सम्यग्भावसमन्थितः ।।१०।। अन्वयार्थ – तत्र = वहौं, उक्ताहारनिश्वाससम्प्राप्तपरिपूरितः = शास्त्र में
निर्दिष्ट के अनुसार आहार, श्वासोच्छवास को प्राप्त होते हुये जिसने आयु पूर्ण कर ली है वह, सम्यग्भावसमन्वितः = सम्यक्त्व भाव से सहित उस देव ने, तद्ध्यात्वा = सिद्धों का
ध्यान करके, सिद्धान् = सिद्धों को, ववन्द = प्रणाम किया। श्लोकार्थ – वहाँ सर्वार्थसिद्धि में उस देव ने शास्त्र में बताये अनुसार ।
आहार, श्वासोच्नास प्रारा देते हुये आयु पूर्ण कर ली। उस समय सम्यक्त्वभाव से सहित उस देव ने सिद्ध भगवन्तों को ध्यान करके उन्हें प्रणाम किया। पुनश्चार्य प्रकारेणावतरद्वसुधातले ।
तद्वक्ष्ये संग्रहेणाहं ध्यात्वा चित्ते तमेव हि ।।११।। अन्ययार्थ – पुनश्च = और फिर, अयं = यह देव, (येन = जिस). प्रकारेण
= प्रकार से, बसुधातले = पृथिवी पर, अवतरत् = अवतरित हआ, अहं - मैं, तमेव - उनको ही अर्थात् तीर्थंकर कुन्थुनाथ को ही, चित्ते = मन में, ध्यात्वा = ध्याकर, संग्रहेण = संग्रह रूप से, हि = ही. तत् = उस अवतरण को. वक्ष्ये = कहता
श्लोकार्थ – दुबारा फिर से यह देव जिस प्रकार से पृथ्वी पर अवतरित
हुआ उसको मैं कवि उन्हीं को अर्थात् तीर्थङ्कर कुन्थुनाथ को ही मन में करके उस देव की तीर्थकर के रूप में
अवतरित होने की कथा को मैं कहता हूं। जम्बूद्वीपे महाद्वीपे भारतक्षेत्रे उत्तमे ।
कुरूजाङ्गलदेशोऽस्ति प्रसिद्धो धर्मसागरः ।।१२।। अन्वयार्थ . जम्बूद्वीपे = जम्बू वृक्ष वाले, महाद्वीपे = महान् द्वीप में, उत्तमे
= श्रेष्ठ, भारतक्षेत्रे = भरत क्षेत्र में, प्रसिद्धः = विख्यात, (च -- और), धर्मसागरः = धर्म एवं धर्मात्मा के सागर स्वरूप, कुरूजाङ्गलदेशः = कुरूजाङ्गल देश, अस्ति = है या था।