Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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चतुर्दशः
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मास एकदिन तस्याः प्रतिप्रारमुत्तमम् ।
शब्दोऽभूत्तेन बहवो रोगिणः सुखिनोऽभवत् ।।७३।। अन्वयार्थ - मासे = माह में एकदिने = एक दिन, प्रतिप्रहरम् = प्रत्येक
प्रहर, तस्याः = उस भेरी का, उत्तम = उत्तम, शब्दः = शब्द, अभूत् = होता था, तेन = उससे, बहवः = बहुत. रोगिणः -
रोगी, सुखिनः = सुखी, अभवन् = हो गये। श्लोकार्थ • माह में एक दिन प्रत्येक प्रहर उस भेरी का उत्तम शब्द होता
__ था उससे अनेक रोगी सुखी हो गये। महती यात्रिकी लग्ना रोमिभिर्निलिखलैः कृता। श्रुतस्तस्ययाः प्रभावो यैराग्च्दन्ति तदुपेतताम् ।।७४।। आगतस्तत्र यस्तया शृणोत् घोषभुत्तमम् ।
स तक्षणादपापोच्चैरायोग्यं घिरवाञ्छितम् ।।७५ ।। अन्वयार्थ - निखिलैः = सम्पूर्ण, रोगिभिः = रोगियों द्वारा, कृता = प्रचारित
की गयी, महती = बहुत बडी, यात्रिकी = यात्रा करने वालों की भीड या ख्याति, (तत्र = वहाँ), लग्ना - जुड गयी। यैः - जिन रोगियों या लोगों के द्वारा, तस्या. = उस भेरी का प्रभाव, श्रुतः = सना गया, (ते = ), लादपंतता = उस मेरी की सभीयता को, (लब्धुं = पाने के लिये), आगच्छन्ति (स्म) == आ जात थे। यः = जो. तत्र = वहाँ, आगतः = आया, (च - और), तया = उस मेरी से, उत्तमम् = उत्तम, घोषम् = घोष को, अश्रृणोत् = सुना, सः = वह, तत्क्षणात् = उसी समय, हि = ही. अपापोच्चैः = उत्कृष्ट पुण्य के कारण, चिरवाञ्छितम् = चिर अभिलषित, आरोग्यं = निरोगता को, (लब्धवान् = प्राप्त
हुआ)।
श्लोकार्थ - जो उस भेरी के घोष को सुनकर निरोगी हो गये थे उन सभी
रोगियों द्वारा गेरी का प्रचार किया गया जिससे उस भेरी की बहुत बडी ख्याति फैल गयी और यात्रियों की भीड वहाँ लगने लगी। जिन लोगों के द्वारा उस भेरी का प्रभाव सुना गया