Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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चतुर्दशः
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से, सः = उस, भेरीपालः = भेरी पालक ने, तद्वाक्यं = राजा
के वाक्य को. न = नहीं, अग्रहीत् = ग्रहण किया। श्लोकार्थ - तुम मुझे भेरी की ध्वनि धीरे से सुना दो मैं तुम्हें एक करोड
स्वर्ण मुद्रायें दूंगा। हर्ष से सुनकर भी भेरीपाल ने अपने राजा
के डर से उस राजा की बात नहीं मानी । पुरस्तं प्राह नृपति सः चेन्न वादयसीह तां ।
किञ्चिच्छित्वा तर्हि तां मे देहि मदोगशान्तये ।।५।। अन्वयार्थ - सः = उस, नृपतिः = राजा ने, तं = उसको, पुनः = फिर
से, प्राह - कहा, चेत् - यदि, इह = यहाँ, तां = उस भेरी को, न = नहीं. वादयसि - बजाते हो, तर्हि = तो, तां = उसको, किञ्चिच्छित्वा = कुछ छेदकर या तोड़कर, मद्रोगशान्तये = मेरे रोग को शान्त करने के लिये, मे = मेरे
लिये, देहि = दे दो। श्लोकार्थ - उस राजा ने पुनः उस भेरीपालक को कहा यदि तुम यहाँ
अभी उस भेरी को नहीं बजाते हो तो भेरी को कुछ थोड़ा
सा तोडकर मेरे रोग की शान्ति के लिये मुझे दे दो। लोभतोऽथ सुवर्णरय. कोट्युक्तस्य स भेरीपः।
उक्तं हेमं गृहीत्वा तां भित्वा किञ्चितस्मै ददौ ।।६।। अन्ययार्थ- अथ = उसके बाद, सः = उस, भेरीपः - भेरीपाल ने.
कोट्युक्तस्य = कहे गये एक करोड़ मुद्रा, सुवर्णस्य - स्वर्ण के. लोभतः -- लोभ से. उक्तं - उपर्युक्त, हेमं = स्वर्ण को, गृहीत्वा = लेकर, तां = भेरी को, किञ्चित् = थोड़ा सा, भित्वा
= तोड़कर, तस्मै = उस राजा के लिये, ददौ = दे दिया। __ श्लोकार्थ- उसके बाद उस भेरीपाल ने एक करोड स्वर्णमुद्राओं के लोभ
से उपर्युक्त्त स्वर्ण मुद्राओं को लेकर उस भेरी को थोड़ा-सा
तोड़कर उस राजा के लिये दे दी। सधृष्य देहे लिप्त्वा तां स च क्षितिनायकः ।
व्यथां संहृत्य सर्वाङ्गो निय॑थुस्तत्क्षणादभूत् ।।७।। अन्वयार्थ- तां = उस भेरी के टुकडे को, सङ्घृष्य = घिसकर, च =
और, देहे = देह में, लिप्त्वा = लिप्त करके. सः = उस.