Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रसन्नता से, तस्मै = दे दिया |
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लोकार्थ - राजाओं में श्रेष्ठ विष्णु नृपति ने पुत्र की तरुण अवस्था आ जाने पर उसे सर्वथा योग्य समझकर हर्ष पूर्वक स्वयं ही उसके लिये राज्य दे दिया ।
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
उसके लिये, राज्यं = राज्य को ददौ
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सम्प्राप्य पैतृकं राज्यं सिंहासनस्थितः प्रभुः । शुशुभेऽतितरां दीप्त्या देवेन्द्रं प्रीडयन्निव । । ४२ ।।
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अन्वयार्थ – पैतृकं = पिता के, राज्य = राज्य को, सम्प्राप्य प्राप्त करके, सिंहासन स्थितः सिंहासन पर विराजमान, प्रभुः = राजा श्रेयांसनाथ दीप्त्या = अपनी कान्ति से इव = इन्द्र को ब्रीडयन् = लज्जित करते हुये अत्यधिक शुशुभे सुशोभित हुये ।
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मानों, देवेन्द्र अतितरां
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लोकार्थ – पिता के राज्य को पाकर सिंहासन पर विराजमान राजा श्रेयांसनाथ अपनी दीप्ति से मानों इन्द्र को लज्जित करते हुये अतिशय शोभा को प्राप्त हो रहे थे ।
तस्य राज्येऽखिला पृथ्वी तस्करैर्वञ्चकैर्विना । परमानन्दमन्वभूत् निर्भया निरूपद्रवा ||४३||
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अन्वयार्थ तस्य उनके राज्ये राज्य में अखिला सम्पूर्ण, पृथ्वी धरती ने तस्करैः = तस्करों के वञ्चकैः = वञ्चकों के, विना = विना, निर्भया = भय से रहित, निरूपद्रवा = उपद्रव से रहित (भूत्वा होकर ), परमानन्दं = परम आनन्द का, अन्वभूत् = अनुभव किया।
बलोकार्थ उनके राज्य में तस्करों और ठगों के विना सारी पृथ्वी ने भय और उपद्रव से रहित होकर परमानन्द का अनुभव किया। विपक्षाहतपक्षा च तं मत्त्वा विजयेश्वरम् । सन्तारणोपायनीकृत्य शरण्यं शरणंगलाः । । ४४ ।।
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अन्वयार्थ च = और, विपक्षाहतपक्षाः शत्रुओं द्वारा खण्डित नष्ट न किये जाने योग्य उनके भागों पक्षों के राजाओं ने तं उन राजा को सन्तारणोपायनीकृत्य = तीर्थ स्वरूप पार लगाने
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