Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
३२०
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य एकविंशतिलक्ष वर्षा युःपर्यन्तं बालकेलिषु ।
आसक्तः स्वेच्छया देयः सुखं पित्रोद॑दौमहत् ।।३७ ।। __ अन्वयार्थ – शीतलेशात् = तीर्थङ्कर शीतलनाथ से, वै = निश्चय ही,
षट्षष्ठिकोटिसम्प्रोक्तसागरेषु = छयासठ करोड़ सागर, गतेषु = बीत जाने पर, तन्मध्ये = उक्त काल के भीतर ही. प्राप्तजीवनः = जिन्होंने जीवनप्राप्त किया था ऐसे, श्रेयान् = श्रेयांसनाथ, अमूत् =हुये, चतुर्युक्ताशीतिलक्षावर्षायुषः = चौरासी लाख वर्ष पर्यन्त आयु वाले, चापाशीत्युन्नतिं = अस्सी धनुष की ऊँचाई को, विभ्रदिवाकरजयीरुचिः - धारण कर सूर्य को जीतने वाली क्रान्ति से युक्त, प्रभः = तीर्थङ्कर श्रेयांसनाथ, अभवत् = हुये थे, एकविंशतिलक्ष-- वर्षायुःपर्यन्तं = इक्कीस लाख वर्ष आयु तक, बालकेलिषु = बालक्रीड़ाओं में, आसक्तः = लगे हुये, देवः = बाल तीर्थङ्कर ने, स्वेच्छया = अपनी इच्छा से. पित्रोः = माता पिता के लिये,
महत् = अत्यधिक, सुखं = सुख, ददौ = दिया। श्लोकार्थ – तीर्थकर शीतलनाथ के बाद छयासठ करोड़ सागर बीत
जाने पर इस काल में ही होने वाले तीर्थङ्कर श्रेयांसनाथ हुये थे। इनकी आयु चौरासीलाख वर्ष थी तथा शरीर की ऊँचाई अस्सी धनुष प्रमाण थी । यह प्रभु सूर्य की कान्ति को जीतने वाली कान्ति से युक्त थे। इक्कीस लाख वर्ष तक बाल क्रीड़ाओं में लगे हुये प्रभु ने अपनी इच्छा से माता-पिता
को अत्यधिक सुख दिया। कुमारवयसि श्रीमान् रूपलादण्यसागरः ।
अशेषसुरमानां मनोऽहरदवेक्षणः ।।३८।। अन्वयार्थ - कुमारवयसि = कुमारावस्था में. रूपलावण्यसागरः = सागर
के समान अपरिमित रूप और लावण्य से युक्त, अवेक्षणः = सुन्दर नयन दृष्टि, श्रीमान् = शोभासम्पन्न, सः = यह, अशेषसुरमानां = सभी देव और मनुष्यों के, मनः = मन
को, अहरत् = हर लेता था। श्लोकार्थ – कुमारावस्था में वह कुमार सागर के समान अपरिमित रूप