Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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मदोन्मत्त, सिन्धुरं = हाथी को संवीक्ष्य देखकर, नयने = दोनों नेत्रों को, उन्मील्य = खोलकर, प्रबुद्धा जाग गयी, अथ = तथा फिर, समुत्थिता = उठी हुयी, सा = वह. सुगन्धितजलेन = सुगन्धितजल से विधिवत् : विधिपूर्वक, भुखं = मुख को प्रक्षाल्य = धोकर तान् = उन स्वप्नान = स्वप्नों को, संप्रभाषितुं = कहने के लिये पत्युः = पति के समीपं पास में, अगमत् = गयी, तेन पति द्वारा सादरं = आदर सहित आगच्छ आओ इति = इस प्रकार उक्ता
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कही गयी, सा = वह रानी, तत्र = वहाँ, उपविश्य = बैठकर. च = और, स्वप्नान् = स्वप्नों को, निवेद्य निवेदित करके. = उनका, फलं सुविस्मिता = आश्चर्य से भरी हुयी, तेषां फल, अपृच्छत् = पूछा, सुखाश्रुकलितेक्षणः = सुख के कारण से निकले हैं आँसू जिसके ऐसे क्षेत्रों वाले श्रुतस्वप्नः = स्वप्नों को सुनने वाले, महीपालः = उस राजा ने देव = रानी को. प्राह = कहा, प्राज्ञे ! हे बुद्धिमते! शृणु = सुनो, तव तुम्हारे, गर्भे गर्भ में, नूनं निश्चित ही, जगत्पतिः = जगत् के स्वामी तीर्थङ्कर, समागतः = आ गये हैं तेन उस पुत्र के होने से, त्वं सार्थक वाली माता, पुत्र भविष्यसि श्लोकार्थ उस राजा की लोक में अत्यधिक प्रसिद्ध जयश्यामा नाम की रानी थी। उस रानी के गर्भ में उस अहमिन्द्र का अवतार होगा
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ऐसा जानकर सौधर्म इन्द्र ने कुबेर को आदेश दिया । इन्द्र के आदेश से उस यक्षपति कुबेर ने हर्षपूर्वक राजा के उत्तम घर में छह माह तक रत्नों की बरसात की । जेठ बदी दशमी के दिन उस जयश्यामा नामक राजा की रानी ने सोते हुये प्रभातबेला में सोलह शुभ स्वप्नों को देखा तथा स्वप्न दर्शन के अन्त में अपने मुख में प्रविष्ट होते हुये एक मदोन्मत्त हाथी को देखकर व अपने दोनों नेत्रों को खोलकर जाग गयी फिर उठकर सुगन्धित जल से अपने मुख को धोकर वह राजा के पास गयी। राजा द्वारा आदर सहित आओ ऐसा कही गयी वह वहीं बैठ गयी और आश्चर्य सहित उन स्वप्नों को पति
द्वादशः
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तुम सत्पुत्रा
हो जाओगी।