Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्लोकार्थ
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
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= छोड़कर, चतुर्थ = चौथे, एव = ही, स्वर्ग = स्वर्ग को, सम्प्राप्य = प्राप्त करके, देवतारूपः = देव होकर तत्र = वहीं, च्युत हुआ, अस्थात् = रहा, तस्मात् = उस स्वर्ग से, च्युतः सुन्दर = वह देव), मालवाख्ये = मालवा नामक, सुदेशे : देश में, अवन्तिकापुरे अवन्तिका पुर में, रूद्रदत्तः = रूद्रदत्त नामक, बलवान् = बलशाली, तथा = और, मतिमान् बुद्धिमान्, राजा राजा, अभवत् = हुआ था, च = और, तस्य एटा की सुधर्माख्या - सुधर्मा नामक, राज्ञी = रानी, द्विसंयोगतः = दोनों के संयोग आसीत् = थी, तदा = तब, से. सुरूपवान् = सुन्दर, शीलवान् चरित्रवान, तेजसन्निधिः कान्ति प्रतापपुञ्ज, ज्ञानवान् = ज्ञानी, च = और, कान्त्या = से, शशिसमप्रभः = चन्द्रमा के समान आभा वाला, सुप्रभनाम৷ सुप्रभ नामक पुत्रः उस विप्रकावती नगरी में वैश्रवण नामक एक पुण्यात्मा व महान् राजा हुआ उसकी रानी विजयन्ती अपने गुणों से सुशोभित होती हुई सौन्दर्यशालिनी, शीलवती और महान् गुणों की खान थी ।
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पुत्र, आसीत् हुआ था।
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तपस्वी धैर्यवानेकदा
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एक बार विजयसेन नामक राजा किसी कारण से वैश्रवण राजा के प्रति क्रोध से भर गया और वहाँ सेना सहित लड़ने आ गया । वैश्रवण अपनी सेना सहित उसके साथ युद्ध करके पराजित हो गया तथा क्रोध से खेदखिन्न होकर उसने मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। अपने शुभ कर्मों के कारण उसने आयु के अन्त में शरीर छोड़कर चौथे स्वर्ग में देव पर्याय प्राप्त कर ली और वहीं सुख से रहने लगा । वहाँ से च्युत होकर मालव नामक सुन्दर देश की अवन्तिका पुरी में बलवान् और बुद्धिमान् राजा रूद्रदत्त तथा सुधर्मा नामक रानी के संयोग से उनके यहाँ सुन्दर, चरित्रनिष्ट, प्रतापी, ज्ञानी और कान्ति में चन्द्रमा के समान प्रभा वाला पुत्र हुआ ।
गुणगंभीर:
साहसी
वीरवन्दितः ।
भूपः
सुप्रभो
मुनिमागतम् । ।७१ ||