Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य सर्वार्थसिद्धि को, अगम्त :- चले मगे, ससा :- 'नहाँ,
अहमिन्द्रतां = अहमिन्द्र पद को, प्राप = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ · आयु के अन्त में संन्यासमरण की विधि से प्राणों का त्याग
करके वह मुनिराज सर्वार्थसिद्धि चले गये और वहाँ
अहमिन्द्रता को प्राप्त कर लिया । तत्रा प्रभुर्यथोक्तायुराहारोच्छवाससंयुतः ।।
त्रि ज्ञानाधीश्वरो भूत्वा सर्वकार्यक्षमोऽभवत् ।।१०।। अन्वयार्थ - तत्रा = उस सर्वार्थसिद्धि में, प्रभुः = वह प्रभु,
यथोक्तायुराहारोच्छ्वाससंयुतः = जैसा शास्त्रों में कथित है वैसे ही आयु, आहार और उच्छ्वास से युक्त वह अहमिन्द्र, त्रिज्ञानाधीश्वरः = तीन ज्ञान का स्वामी, भूत्वा = होकर, सर्वकार्यक्षमः = सारे कार्यों को करने में समर्थ, अभवत् =
हुआ। श्लोकार्थ - उस सर्वार्थसिद्धि में उन प्रभु ने शास्त्रोक्त अर्थात् तेतीस
सागर की आयु, प्राप्त की तेतीस हजार वर्ष में अमृत आहार और तेतीस पक्ष में श्वासोच्छवास लेते थे। इस प्रकार तीन ज्ञान के स्वामी होकर वह सारे कार्यों को करने में सक्षम थे। परमानन्दभोक्ता स सिद्धध्यानपरायणः । तत्रा षण्मासशिष्टायुः तथानासक्तमानसः ।।११।। ततश्च्युतो यस्मिन् देशे यन्नृपस्य शुभे गृहे ।
अवतीर्णो जगत्स्वामी तद्वक्ष्ये श्रृणुतामलाः ।।१२।। अन्वयार्थ - तत्रा = वहाँ, परमानंदभोक्ता = परम आनन्द को भोगने वाला,
षण्मासशिष्टायुः = छह माह मात्र अवशिष्ट आयु वाला, सिद्धध्यानपरायणः = सिद्धभगवन्तों के ध्यान में तत्पर, तथा = और, अनासक्तमानसः = अनासक्त मन वाला, सः = वह देव, ततः = सर्वार्थसिद्धि से, च्युतः = च्युत हुआ, यस्मिन् = जिस, देशे = देशे में, यन्नृपस्य = जिस राजा के, शुभे = शुभ, गृहे = घर में, जगत्स्वामी = जगत् का स्वामी. अवतीर्णः = अवतरित, उत्पन्न हुआ, तत् = उस अवतरण को, वक्ष्ये