Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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त्रयोदशः
आपेदे = प्राप्त कर लिया, गगनं = आकाश, निर्मलं = निर्मल
अर्थात् स्वच्छ, अभूत् = हो गया। श्लोकार्थ - जब तीन ज्ञान का स्वामी वह देव गर्भ में आ गया तब जगत्
ने प्रसन्नता को प्राप्त किया तथा आकाश भी स्वच्छ हो गया। ज्येष्ठमासेऽथ कृष्णायां द्वादश्यां भूपतिप्रिया।
भगवन्तं सुखं सूते त्रिज्ञानधरमीश्वरम् ।।२५।। अन्वयार्थ - अथ = इसके बाद अर्थात् गर्भकाल बीतने पर, ज्येष्ठमासे =
जेठ माह में, कृष्णायां = कृष्ण पक्ष में. द्वादश्यां = द्वादशी के दिन, भूपतिप्रिया = राजा की रानी ने, त्रिज्ञानधरं = तीन ज्ञानों को धारण करने वाले, ईश्वरं = ऐश्वर्य सम्पन्न, भगवन्तं = तीर्थङ्कर शिशु को, सुखं = सुख पूर्वक. सूर्त = जन्म
दिया। श्लोकार्थ - गर्भकाल बीत जाने के बाद जेट कृष्णा द्वादशी के दिन राजा
की रानी ने तीनज्ञान के स्वामी ऐश्वर्य सम्पन्न तीर्थङ्कर शिशु
को जन्म दिया। धौश्चन्द्रेण यथा प्राधी बालार्केण सुतेजसा ।
तथा देवेन सा देवी रराज शिशुमूर्तिना ।।२६।। अन्वयार्थ - यथा = जैसे, चन्द्रेण = चन्द्रमा से, द्यौः = आकाश, (च =
और), बालार्केण = बालसूर्य के द्वारा, प्राची = पूर्व दिशा. रराज = सुशोभित हुयी. तथा - वैसे, सुतेजसा = शुभ कान्ति युक्त, शिशुमूर्तिना = शिशु रूप. देवेग = तीर्थकर से. सा
= वह, देवी = रानी, रराज = सुशोभित हुयी। श्लोकार्थ - जैसे चन्द्रमा से आकाश तथा बालसूर्य से प्राची सुशोभित
होती है वैसे ही शुभकान्ति से पूर्ण शिशुरूप तीर्थङ्कर से वह रानी सुशोभित हुई। तदैवेन्द्रोऽवधिज्ञानाद् भगवज्जन्म तदरम् ।।
प्रबुध्य देवतैस्सार्धं त्वरया तत्र समाययौ ।।७।। अन्वयार्थ - तदा = तभी, एव = ही, इन्द्रः = इन्द्र, अवधिज्ञानात् =
अवधिज्ञान से, तद्वरं = उस शुभ, भगवज्जन्म = भगवान् के