Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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32€
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य नामक. उत्तमः = उत्तम. महाप्रतापवान् = अत्यंत पराक्रमी, धीरः = धीर, पुण्यवान् = पुण्योदय से युक्त, पुण्यकृतप्रियः = पुण्य करने से प्रिय, तत्सुतः = राजा रत्नसेन और रानी मलया का पुत्र, अमूत् = हुआ, चारूसेनस्य = चारूसेन के, मन्दिरे = महल या मन्दिर में, चक्रवर्तिनृपात् = चक्रवर्ती राजा से, अपि = भी, बहवः = अधिक-बहुत, निधयः = निधियां, जाताः = उत्पन्न हुईं. च .. और, सः = उस, नृपः = राजा
ने, तत्सुखं = उस सुख का, अन्वभूत = अनुभव किया। श्लोकार्थ - स्वर्ग का वह इन्द्र रत्नसेन और मलया का उत्तम, अत्यंत
पराक्रमी, धीर, पुण्यवान् और पुण्य करने से प्रिय पुत्र हुआ। चारूसेन के महल में चक्रवर्ती राजा से भी अधिक निधियां
उत्पन्न हुईं तथा उस राजा ने उस का अनुभव किया। एकदा स ययातः कीडां कुर्वन् सुखान्यितः । दरिद्रमेकं दृष्ट्या च पूर्वजन्म समस्मरत् ।।८६।। ईदृग्यिधो भये पूर्वेऽभवं चाहमपीक्षितम् ।
सम्मेदशैलयात्रातः क्षितीशोस्मीह साम्प्रतम् ।।८।। अन्वयार्थ - एकदा = एक दिन, सः = वह राजा, क्रीडां = क्रीडा को,
कुर्वन् = करता हुआ. सुखान्वितः = सुख से युक्त हुआ. वनं = वन में, यातः = गया, (तत्र = वहाँ), एक = एक, दरिद्रं = दरिद्र को, दृष्ट्वा = देखकर, पूर्वजन्म = पूर्व के जन्म को, समस्मरत् = अच्छी तरह से याद किया, पूर्वे = पूर्व, भवे = भव में, अहम् = मैं, अपि = भी, ईदृग्विधः = इस प्रकार ही अथवा इसके जैसा ही दरिद्र, अभवम् = था. साम्प्रतं = अब वर्तमान में, सम्मेदशैलयात्रातः = सम्मेदशिखर की तीर्थवन्दना रूप यात्रा से, इह = यहाँ या इस नगर में, क्षितीशः
- राजा, अस्मि = हूं, इति = ऐसा, ईक्षितम् = विचार किया। श्लोकार्थ - एक दिन वह राजा क्रीड़ा करता हुआ और सुख का अनुभव
करता हुआ एक वन में गया वहाँ उसने एक दरिद्र को देखा जिसे देखकर उसे अपना पूर्व जन्म याद आ गया अहो ! मैं पूर्वभव में इसके जैसा ही दरिद्र था अभी वर्तमान में