Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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द्वादशः
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आसीत्तत्र सुखेनासौ षण्मासावधिजीवनः । तस्यावतारचरितं श्रवणात् कल्मषापहम् ।।१७।। वक्ष्ये संक्षेपरीत्याहं श्रृणुध्वं पुरूषोत्तमाः । जम्बूमामा माहीये मतदो। उत्तगे || विधुत्तरेय सा शुभ्रा काम्पिलाख्या महापुरी ।
कृतवर्मा महीपालः तां स्नेहात् पर्यपालयत् ।।१६।। अन्वयार्थ – तत्र = उस स्वर्ग में, सुखेन = सुख से, असौ = वह,
षण्मासायधिजीवनः = छह माह शेष आयु वाला, अभूत् = हुआ, श्रवणात् = सुनने से, कल्मषापहं = कल्मष अर्थात पाप को दूर करने वाले, तस्य = उस देव के, अवतारचरितं = स्वर्ग से च्युत होने के वृत्तान्त को, संक्षेपरीत्या = संक्षेप रीति से, अहं = मैं, वक्ष्ये = कहता हूं, पुरूषोत्तमाः = हे पुरूषोत्तमो!. श्रुणुध्वं = तुम उसे सुनो। जम्बूनाम्नि = जम्बू नामक, महाद्वीपे = महाद्वीप में, उत्तमे = उत्तम, भरतक्षेत्रे = भरत क्षेत्र में, विद्युत्तरेव = बिजली की चमक के समान, शुभ्रा :- शुभ्र -श्वेत, सा = वह, महापुरी = महानगरी, कम्पिलाख्या = कम्पिला नाम वाली, आसीत = थी. महीपालः = राजा, कृतवर्मा = कृतवर्मा, ता - उसका.
स्नेहात् = स्नेह से. पर्यपालयत् = परिपालन करता था। श्लोकार्थ – उस स्वर्ग में सुख से आयु पूर्ण करता हुआ वह छह माह की
शेष आयु वाला हुआ। कवि कहता है कि मैं उसके अवतार की कथा को कहता हूं | हे श्रेष्ठ पुरूषों! तुम उसे सुनो यह कथा सुनने से पापों का नाश होता है। जम्बूद्वीप के उत्तम भरतक्षेत्र में धवलकान्ति से पूर्ण अत्यधि शुम एक महानगरी थी वह कम्पिला के नाम से जानी जाती थी । कृतवर्मा राजा
प्रेम से उसका परिपालन किया करता था। जयश्यामाभिधा तस्य राज्ञी लोकेतिविश्रुता। भविष्यत्यवतारो यै तस्य देवस्य निर्मलम् ।।२०।। बुद्ध्या धनेशं तत्रासौ सौधर्मेन्द्रस्समादिशत् । इन्द्राज्ञप्तस्स यक्षेन्द्रः क्षितीशागर उत्तमे ।।२१।।