Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
१६०
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ - तदा = तभी, जम्बूमति = जम्बूवृक्ष वाले, द्वीपे - द्वीप में, उत्तमे
= उत्तम, भरते = भरत, क्षेत्रे = क्षेत्र में, आर्यखण्डे = आर्यखण्ड में शुमे = शुभ, देशे = देश में, भद्रनाम्नि = भद्र नामक. नगरे = नगर में, इक्ष्वाकुवंशे = इक्ष्वाकुवंश में, नाम्ना = नाम से, दृढ़रथः = दृढ़रथ, महान् = एक महान, राजा = राजा, अभूत् = हुआ, (तस्य = उसकी), देवतोपमा = देवाङ्गना तुल्य, सुभगा = सौन्दर्यशालिनी, सुनन्दाख्या =
सुनन्दा नाम की, महाराज्ञी = महारानी, (आसीत् = थी)। श्लोकार्थ – उस समय जम्बूद्वीप के उत्तम भरतक्षेत्र में आर्यखण्डवर्ती शुभ
देश में एक भद्र नामक नगर है जिसमें इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न एक महान राजा दृढ़रथ हुये थे। उनकी देवाङ्गना तुल्य और
सुन्दर सुनन्दा नाम की महारानी थी। प्रभोरागमनं तस्य गृहे ज्ञात्वा स धासवः । यक्षराजं महोत्साहात् रत्नदृष्ट्यर्थमादिशत् ।।१४।। षण्मासमेकरीत्या सः प्रेमजीमूतवत्तदा ।
सुवृष्टि च मुदा चक्रे मुसलाकारधारिकाम् ।।१५।। अन्वयार्थ - तस्य = उस राजा के, गृहे = घर में, प्रभोः = भगवान् का,
आगमनं = जन्म लेना, ज्ञात्वा = जानकर, सः = उस, वासवः = इन्द्र ने महोत्साहात् = अति उत्साह से, यक्षराजं = यक्षाधिपति कुबेर को. रत्नवृष्ट्यर्थ = रत्नों की वर्षा करने के लिये, आदिशत = आदेश दिया, तदा = तब, अर्थात् इन्द्र का आदेश मिलने पर, सः = उस कुबेर ने, षण्मासं : छह माह तक, एकरीत्या = एक जैसी विधि से, प्रेमजीमूतवत् = प्रेमपूर्वक बादलों के समान, मुसलाकारधारिकारिकाम् = भूसल के आकार बराबर धारा वाली अर्थात् मूसलाधार, सुवृष्टि - सुन्दर वर्षा-रत्नों की बरसात. मुदा = प्रसन्न मन
से, चक्रे = की। श्लोकार्थ – उस राजा के घर में प्रभु का आगमन होगा ऐसा जानकर
इन्द्र ने कुबेर को अति उत्साह से रत्नों की वर्षा करने की आज्ञा दे दी। आज्ञा पाने पर कुबेर ने लगातार छह माह तक