Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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दशमः
३०५ अन्वयार्थ - च = और, भूपानाम् =: राजाओं के लिये, आगमे = आगम
में, अन्य दानानि = उन चार दानों से भिन्न दान, दश = दश, भूरिशः = अच्छी तरह से. घोक्तानि .. टोम, भूगेन्द्र = हे राजन्!, मया = मेरे द्वारा, वै = अच्छी तरह से, संभाषितानि = कहे गये, एतानि = इनको, शृणु = सुनो. अनुक्रमात् = क्रमशः, कन्याश्यगजदास्यस्त्ररथालयधनानि = कन्या, अश्व, गज, दासी, अस्त्र, रथ, आलय, धन, तिलगोधूमदशदानानि - तिल और गेहूं आदि दश दान,
(सन्ति = हैं)। श्लोकार्थ – तथा राजाओं के लिये आगम में पूर्वोक्त चार दानों से अलग
अन्य दश दान अच्छी तरह से कहे गये हैं हे राजन्! उन्हें सुनो क्रमशः वे दश दान इस प्रकार हैं . . (१) कन्यादान, (२) अश्वदान, (३) गजदान, (४) दासी का दान, (५) अस्त्रदान, (६) रथदान, (७) आलय दान, (८) धन का दान, (६) तिल
का दान, (१०) गोधूम का दान। श्रुत्वा दानानि संदातुमुद्यतोऽभून्महीपतिः ।
कस्मै देयानि दानानि इति वाक्यं समुच्चरन् ।।६० ।। अन्वयार्थ – दानानि - दानों को, श्रुत्वा = सुनकर, करम = किसके लिये,
दानानि = दान, देथानि = देना चाहिये, इति = इस, वाक्यं = वाक्य को. समुच्चरन् = बोलता हुआ. महीपतिः - राजा, संदातुं - दान देने के लिये, उद्यतः - तैयार. अभूत् = हो
गया। श्लोकार्थ – इन दश दानों को सुनकर, ये दान किसको देना चाहिये इस
वाक्य को बोलता हुआ वह राजा दान देने के लिये उद्यत
हो गया। सोमशर्मा एवतो मूढः बालस्तान्यतिलोभतः । शास्त्रयत्प्रतिजग्राह दानान्युक्तानि दुष्टधीः ।।६१।। स्वतः स्वीकृत्य दानानि नृपात्तुष्टोऽभवत्तदा । तन्मेघरथवंशेऽभूत् भूपोऽविचलनामकः । ६२ ।।