Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री राम्भेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ – तदा = तब, स्वतः = स्वयं से, मूढः = मूर्ख, बालः =
भोला-मुग्ध, दुष्टधीः = दुष्टबुद्धि वाले. सोमशर्मा - सोमशर्मा ने, अतिलोभतः = अत्यधिक लोभ से. तानि = वे, उक्तानि :- कहे गये, दानानि :- दान, स्त्रया : सार के समान, प्रतिजग्राह = ग्रहण कर लिये, नृपात् = राजा से. दानानि = दान, स्वीकृत्य = स्वीकार करके, स्वतः = स्वयं से, संतुष्टः - संतुष्ट, अभवत् = हो गया, तन्मेघस्थवंशे = उस मेघरथ के कुल में, अविचलनामकः = अविचल नामक, भूपः = राजा,
अभूत् = हुआ। श्लोकार्थ – तब खुद ही मूर्ख बन भोले अज्ञानी उस सोमशर्मा ने अत्यधिक
लोभ के कारण कहे गये उन को शास्त्र के समान ग्रहण कर लिया तथा राजा से दान स्वीकार करके स्वयमेव संतुष्ट हुआ। उसी मेघरथ राजा के कुल में अविचल नाम का एक राजा
हुआ था। मुनिचारणसंगाच्च निर्मले तस्य मानसे। सम्मेदभूमिभृद्भक्तिर्जाता त्यचिरकालतः ।।६३ ।। अद्भुतो महिमा तस्य श्रुतः श्रुत्वा जहर्ष सः ।
तदा संघसमेतोऽसौ शैलसद्दर्शनोत्सुकः ।।६४।। अन्वयार्थ - तस्य = उस राजा के, निर्मले = निर्मल निर्विकार, मानसे
- मानस या मन में, सम्मेदभूमिभृद्भक्तिः = सम्मेद पर्वत की भक्ति, जाता = उत्पन्न हो गयी. अचिरकालतः = जल्दी से. हि = ही, मुनिचारणसंगात् = चारण मुनियों का संग मिल जाने से, तिन = उस राजा द्वारा) तस्य = सम्मेदपर्वत की, अद्भुतः = आश्चर्यकारी, महिमा = महिमा, श्रुतः = सुनी गयी, च = और. (तं = उसको) श्रुत्वा = सुनकर, सः = वह राजा, जहर्ष = हर्षित हुआ, तदा = तब, असौ = वह राजा, संघसमेत: = संघ के साथ, शैलसदर्शनोत्सुकः = पर्वत के दर्शन अच्छी
तरह से करने के लिये उत्सुक, (अमूत् = हो गया)। श्लोकार्थ - उस अविचल राजा के निर्मल मन में सम्मेदाचल पर्वत की
भक्ति उत्पन्न हो गयी, जल्दी ही चारण मुनियों के समागम