Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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- देवों द्वारा पर, आरूट्य के लिये घर
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = देवों द्वारा लायी गयी, शक्रप्रभा = शक्रप्रभा नामक, शिबिका ' = पालकी पर, आरुह्य = चढकर, तपसे = तप के लिये, मुनिजनालयं = मुगिजनों के लिये घर स्वरूप, वनं = वन
को, स्वयं = स्वयं की इच्छा से, ज़माम - चल दिया। श्लोकार्थ - अपने समर्थ पुत्र को राज्य देकर लौकान्तिक देवों से स्तुति
किया जाता हुआ तथा इन्द्रादि द्वारा जिसके मङ्गल किये जा रहे हैं ऐसा वह राजा मुक्त होने के लिये जल्दी ही देवों द्वारा लायी गयी शक्रप्रभा नामक पालकी में चढ़कर तपश्चरण
करने के लिये मुनिजनों के लिये घर स्वरूप वन में चला गया। द्वादश्यां माघमासे स कृष्णायां जन्मभे शुभे ।
दीक्षां जग्राह शुद्धात्मा जैनी जैनजनार्चितः ।।३७।। अन्वयार्थ – माघमासे = माघ मास में, कृष्णायां = कृष्णपक्ष संबंधी,
द्वादश्यां = बारहवीं तिथि में, शुभे = शुभ, जन्मभे = जन्म नक्षत्र में, जैनजनार्चितः = जैन अर्थात् जिन भक्त जनों द्वारा पूजित होते हुये, सः = उस. शुद्धात्मा = शुद्ध-आत्मा ने. जैनी = जैनेश्वरी, दीक्षां = मुनिदीक्षा को, जग्राह = ग्रहण कर
लिया। श्लोकार्थ - माघ कृष्णा द्वादशी के दिन शुभस्वरूप जन्म नक्षत्र में जैन
जनों से पूजा किया जाता हुआ उस राजा ने जैनेश्वरी मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली। सहेतुकयने धृत्या दीक्षां वेलोपवासकृत् ।
सहसक्षितिषस्सार्धं रराजार्कसमप्रभः ।।३८|| अन्वयार्थ – वेलोपवासकृत् = दो दिन के उपवास की प्रतिज्ञा वाला वह,
सहेतुकवने = सहेतुक वन में, सहस्रक्षितिपैः = एक हजार राजाओं के, सार्ध = साथ, दीक्षा = मुनिदीक्षा को, धृत्वा = धारण करके, अर्कसमप्रभः = सूर्य के समान प्रभा वाला वह.
रराज = सुशोभित हुआ। श्लोकार्थ – सहेतुक वन में एक हजार राजाओं के साथ मुनिदीक्षा को
धारण कर दो दिन के उपवास की प्रतिज्ञा वाला वह सूर्य की प्रभा समान आभा वाला होकर सुशोभित हुआ।