Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
च =
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और, तपोवने = तपोवन में मौनमास्थितः = मौन से बैठे हुये मुनिराज ने सामायिकं = सामायिक को, कृत्वा = करके, केवलम् = अकेले अर्थात् एक मात्र धैर्यम् = धैर्य का. आलम्ब्य == जलम्बन लेकर सर्वान् सारे पदान् परिषहों को सेहे
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= सहा ।
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श्लोकार्थ और फिर तपोवन में मौन पूर्वक बैठे हुये उन मुनिराज ने सामायिक करके मात्र धैर्य का सहारा लेकर सारे परीषहों को सहन किया।
१५६ अन्वयार्थ
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तप उग्रं समादाय वर्षविंशतिर्निर्मलम् । चैत्रैकादशिकादिने । । ५७ ।।
प्रियङ्गुतरूमूले च
अन्ययार्थ
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तभी.
शुक्लपक्षे मघर्क्षे च केवलज्ञानमवाप सः । तदा समवसारे च हीन्द्राद्यैः स्थापितः प्रभुः ।। ५८ ।। सः = उन मुनिराज ने वर्षविंशतिः बीस वर्ष, उग्रं = उग्र. च - और, निर्मलम् = निर्मल, तपः = तपश्चरण को समादाय लेकर, प्रियङ्गुतरुमूले = प्रियङ्गु वृक्ष के नीचे, चैत्रैकादशिकादिने शुक्लपक्षे = चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी के दिन, मघर्क्षे मघा नक्षत्र में केवलज्ञानं केवल ज्ञान को अवाप = प्राप्त किया, च = और, तदा हि ही, इन्द्राद्यैः = इन्द्र आदि देवताओं द्वारा प्रभुः भगवान्, समवसारे = समवसरण में, स्थापितः = स्थापित किये गये । श्लोकार्थ - उन मुनिराज ने बीस वर्ष के लिये निर्मल और उग्र-कठोर तपश्चरण लेकर प्रियङ्गवृक्ष के मूल में अर्थात् नीचे चैत सुदी ग्यारस के दिन मघा नक्षत्र में केवलज्ञान प्राप्त कर लिया तथा तभी इन्द्र है मुखिया जिनका ऐसे देवताओं द्वारा भगवान् समवसरण में प्रतिष्ठापित किये गये ।
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यथोक्तगणपाद्यैश्च
भव्यैर्द्वादशकोष्ठगैः ।
भक्त्या सम्यक् समाराध्यो युवार्क इव स व्यभात् ।। ५६ ।। अन्वयार्थ – च = और द्वादश कोष्ठगैः = बारह कोठों में स्थित,