Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेद शिखर माहात्म्य
लोकार्थ सम्पूर्ण धातकीखण्ड में उसमें भी पूर्वविदेह क्षेत्र में सीता नदी प्रवाहित होती है। उस नदी के दक्षिण में उत्तम स्थान पर सुखसम्पदा से श्रीसम्पन्न वत्स नामक देश सुशोभित होता है । उस देश में धनधान्य की समृद्धि से भरपूर सुसीमानगर है | अपराजितभूपालस्तं पाति स्म स्वतेजसा । युवार्का इव चैश्वर्यात्सुरेन्द्र इव भूमिगः ॥ ४ ॥ ॥ शस्त्रास्त्रैः सर्वशत्रूणां जेतायं भूमिमण्डले । चक्रवर्तिसमो भूत्वा रेजे राजगणार्चितः ||५|| राज्यं सप्ताङ्गसम्पन्नं पूर्वजन्मार्जितैर्वृषैः । बुभोजाख्येन सुखिनांत शिरोमणिः ! ६ ।। नन्ययार्थ – युवाकः इव
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युवार्का इव = युवा सूर्यो के समान, च = और, ऐश्वर्यात् = ऐश्वर्य की अपेक्षा से, भूमिग: भूमि पर रहता हुआ, सुरेन्द्र इव देवाधिप इन्द्र के समान, अपराजितभूपालः = अपराजित राजा, स्वतेजसा अपने तेज से, तं = उस वत्स देश को, पाति स्म = पालता था ।
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अयं = यह राजा, शस्त्रास्त्र शस्त्रों और अस्त्रों से, सर्वशत्रूणां = सभी शत्रुओं का, जेता = विजेता, भूत्वा = होकर भूमिमण्डले = पृथ्वीमण्डल पर चक्रवर्तिसमः = चक्रवर्ति के समान (च = और), राजगणार्चितः = राजाओं के समूह से पूजित, (सन् होता हुआ), रेजे = सुशोभित हुआ ।
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पूर्वजन्मार्जितैः = पूर्वजन्मे में उपार्जित, वृषैः = पुण्याचरण रूप धर्मों से, सः = उस राजा ने सप्ताङ्गसम्पन्नं = सात अङ्गों से परिपूर्ण, राज्यं = राज्य का, बुभोज पालन किया, (च = और), आरोग्यसौख्येन निरोगता के सुख से, सुखिनां सुखियों का शिरोमणिः = शिरोमणि (बभूव = हुआ ) । क्लोकार्थ अनेक युवा सूर्य के समान व ऐश्वर्य में मानों भूमि पर रहते हुये देवाधिप इन्द्र के समान राजा अपराजित ने अपने पराक्रम रूप तेज से वत्सदेश का पालन किया ।
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