Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
१८८
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ – पूर्व = पहिले, सुप्रभभूपालः = सुप्रभ राजा ने, मुदा - प्रसन्न
मन से, तं = उस. कूट = कूट को, प्राणमत् = प्रणाम किया था, तस्य = उसकी, कथां = कथा को. संक्षेपत: = संक्षेप से, वक्ष्ये = मैं कहता हूं, साधवः = हे साधुओं!, शृणुत = तुम
सब सुनो। श्लोकार्थ – सुप्रभ राजा ने पहिले प्रसन्न मन से उस मोहनकूट को प्रणाम
किया था। उसकी वह कथा मैं संक्षेप से कहता हूं- हे साधुओं
अर्थात् सज्जनों! तुम सब उसे सुनो। जम्यूनाम्नि शुभे द्वीपे भारते क्षेत्र उत्तमे ।
बंगदेशे प्रमाकयां नगर्चा सुप्रभोऽभवत् ।।७३।। अन्वयार्थ – जम्बूनाम्नि = जम्बू नामक, शुभे = शुभ, द्वीपे = द्वीप में, उत्तमे
= उत्तम, क्षेत्रे = क्षेत्र में, भारते = भारत में, बंगदेशे = बंगदेश में, प्रभाकर्या = प्रभाकरी. नगर्या = नगरी में, सुप्रभः = सुप्रभ
राजा, अभवत् = हुआ था। श्लोकार्थ – शुम लक्षणों वाले जंबूद्वीप के उत्तम क्षेत्र भारत के बंगदेश
में प्रभाकरी नगरी का राजा सुप्रभ था। तस्य प्रिया सुषेणाख्या सुन्दरी शीलशालिनी ।
गुणाढ्या लक्षणाढ्या च सत्याख्या सम्बभूय सा ।।७४।। अन्वयार्थ - तस्य = उस राजा की, सुषेणाख्या = सुषेणा नामक, प्रिया
= प्रिय पत्नी (आसीत् = थी). सुन्दरी = रूपवती, शीलशालिनी = उत्तम शील का पालन करने वाली, सा = वह, गुणाढ्या = गुणों की खान. लक्षणाढ्या = उत्तम लक्षणों की खान, च = और, सत्याख्या = सत्य बोलने वाली, सम्बभूव
= हुई-प्रसिद्ध हुई। श्लोकार्थ – उस सुप्रभ राजा की एक प्रिय रानी थी जो अत्यंत रूपवती
और उत्तम शील का पालन करने वाली थी। वह रानी उत्तम लक्षणों से सम्पन्न और अनेक गुणों की खान थी तथा सत्य वादिनी के रूप में प्रसिद्ध हुई थी।