Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अखण्ड सुख से परिपूर्ण, कैवल्यं = केवलज्ञान से जनित सिद्ध. पदं = पद को, आप्तवान् = प्राप्त कर लिया, अमुष्य - उनके, पश्चात = बाद में, एकोनपञ्चाशत = उनचास. कोटिकोट्यः = कोड़ाकोड़ी, कोट्यशीतिचतुः = चौरासी करोड़, द्विसप्ततियुल्लक्षकः = बहत्तर लाख, सहस्रसप्तकं = सात हजार, सप्तशती = सात सौ, द्विचत्वारिंशत् = बयालीस, (मुनीना = मुनियों की), बहुसंख्या = बहुत बड़ी संख्या, प्रमाणिता = प्रमाणित, प्रोक्ता = कहीं गयी है, च = और, ति = उन), मुनयः = मुनियों ने, तद्वत = उनके ही समान, क्षपलश्रेणिम = शाक श्रेणी का आश्रित्य = आश्रय लेकर, घातिकर्मसंक्षयात् =. घातिकर्मों का क्षय हो जाने से, केवलज्ञानं = केवलज्ञान को. संप्राप्य = प्राप्त करके, तस्मात् = उसी. प्रभासकूटात् = प्रभास कूट से. लघु = जल्दी ही,
सिद्धालयं = सिद्धालय को, गतः = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ – वहीं सम्मेदशिखर के प्रभास कूट पर, शुक्लध्यान के धारी उन
सुपार्श्वनाथ भगवान् ने फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन अनुराधा नक्षत्र में प्रतिमायोग धारण कर शुक्लध्यान की उग्रवह्नि से सभी कर्मों का क्षय करके एक हजार मुनियों के साथ कैवल्य अर्थात् मुक्तिपद प्राप्त किया। उनके बाद शास्त्रोक्त संख्या अर्थात् ४६ कोड़ाकोड़ी चौरासी करोड़ बहत्तर लाख सात हजार सात सौ बयालीस संख्या प्रमाण बहुत मुनियों ने भी उनके ही समान क्षपक श्रेणी का आलंबन लेकर घातिकर्मों के संक्षय से केवलज्ञान को प्राप्त कर जल्दी
ही उसी प्रभासकूट से सिद्धालय को प्राप्त कर लिया। उद्योतकनरेन्द्रेण तत्पश्चाद् भावतोः गिरेः ।
सम्मेदस्य कृता यात्रा वक्ष्ये तस्य कथां शुभाम् ।।६।। अन्वयार्थ – तत्पश्चात् = उसके बाद, उद्योतकनरेन्द्रेण = उद्योतक राजा
ने, भावतः = भक्ति भाव से, सम्मेदस्य = सम्मेद नामक, गिरेः = पर्वत की, यात्रा = तीर्थवंदना रूप यात्रा. कृता = की, तस्य = उस राजा की, शुभां = शुभ, कथां = कथा को, वक्ष्ये = मैं कहता हूं।