Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्य श्लोकार्थ – उस शैलपुर में पुष्पमित्र राजा ने मुनिराज का सत्कार करके
विधिपूर्वक उन्हें आहार दिया तथा पंचाश्चर्यों को देखा। पुनर्वनमुपागत्य चतुर्वर्ष स मौनभृत् ।
तपश्चकार बहुधा महो महसोज्ज्वलन् ।।४३।। अन्वयार्थ - पुनः = फिर से. वनं = वन के, उपागत्य = समीप आकर,
चतुर्वर्ष = चार वर्ष तक, मौनभृत् = मौन का पालन करने वाले, महसा = तेज से, उज्ज्वलन = चमकते-दमकते हुये, सः = उन मुनिराज ने, बहुधा = बहुत प्रकार से, महोग्रं -
अत्यधिक कठिन-भीषण, तपः = तप. चकार = किया। श्लोकार्थ - पुनः वन में आकर चार वर्ष तक मौन धारण करने वाले और
तेज की प्रभा से चमकते हुये उन मुनिराज ने बहुत प्रकार
अत्यधिक गीषण तपश्चरण किया। घातिकर्मक्षयं कृत्या तपसोग्रेण कार्तिके । शुक्लपक्षद्वितीयायां सन्ध्यायां विल्यमूलके ||४४।। सम्प्राप्य केवलज्ञानं प्राप्तो देवविनिर्मिते । तदा समयसारेऽसौ ज्वलत्कोटिरविः प्रभुः ।।४५।। यथासंख्यं गणेन्द्राद्यैः स्तुतः सम्पूजितस्तथा ।
तत्पृष्टो दिव्यनिर्घोषाध्चक्रे धर्मोपदेशनम् ।।४।। अन्वयार्थ – उग्रेण = उग्र भीषण, तपसा = तपश्चरण से, कार्तिके =
कार्तिक मास में, शुक्लपक्षद्वितीयायां = शुक्लपक्ष की द्वितीया के दिन, सन्ध्यायां = संध्या काल में, बिल्वमूलके = बेलवृक्ष के मूल भाग में अर्थात् नीचे, घातिकर्मक्षयं = घातिकर्मों का क्षय करके, (च = और), केवलज्ञानं = केवलज्ञान को, सम्प्राप्य = प्राप्त करके, देवविनिर्मिते = देवताओं द्वारा बनाये गये, समवसारे = समवसरण में, ज्वलत्कोटिरविः = करोड़ों सूर्य के प्रकाशित होने के समान, असौ = वह, प्रभुः -- भगवान्, प्राप्तः = स्थित हुये. तदा = तब, यथासंख्यं = क्रमानुसार, गणेन्द्राद्यैः = गणधर आदि मुनियों, देवों. मनुष्यों द्वारा. स्तुतः -- स्तुति किये गये, तथा = और, सम्पूजितः = अच्छी तरह