Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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नवमः
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से पूजे गये. तत्पृष्टः = उनके द्वारा पूछे गये उन्होंने, दिव्यनिर्घोषात् = दिव्य उच्चारण स्वरूप उद्घोष से,
धर्मोपदेशनं = धर्म का उपदेश, चक्रे = किया। श्लोकार्थ – भीषण तपश्चरण से कार्तिक सुदी दूज के दिन सन्ध्या काल
में बेल के वृक्ष के मूलभाग में सारे घातिकर्मों का क्षय करके
और केवलज्ञान प्राप्त करके देवताओं द्वारा रचित समवसरण में, करोड़ सूर्यों के प्रकाशित होने के समान वह भगवान् क्रमानुसार गणधर आदि द्वारा स्तति किये गये और पूजे गये उन्ही द्वारा पूछे जाने वाले भगवान ने दिव्यध्वनि के उच्चारण
पूर्वक धर्मोपदेश किया। विहृत्य पुण्यक्षेत्रेषु यथोक्तेषु जिनेश्वरः । एकमासावशिष्टायुः सम्मेदाचलमागतः ।।४७।। सुप्रभं कूटमासाद्य संहृतध्वनिरीश्वरः ।
भाद्रशुक्लत्रयोदश्यां च मुनिर्मुक्तिमाप सः ।।४८।। अन्वयार्थ – जिनेश्वर:- केवलज्ञानी भगवान् पुष्पदंत ने, यथोक्तेषु = जैसे
आगम में कहे हैं उन, पुण्यक्षेत्रेषु = पुण्य क्षेत्रों में, विहृत्य = विहार करके, एकमासावशिष्टायुः = एक माह मात्र अवशिष्ट आयु वाले, सम्मेदाचलं = सम्मेदशिखरपर्वत को, आगतः = आये हुये, मुनिः = केवलज्ञानी मुनि ने, सुप्रभ = सुप्रभनामक. कूटं = कूट को, आसाद्य = प्राप्त करके. च = और, संहृतध्वनिः = संहृत कर ली अर्थात् बंद कर ली है दिव्य: ध्वनि जिन्होंने, सः = वह, ईश्वरः = भगवान् पुष्पदंत ने, भाद्रशुक्लत्रयोदश्यां = भादो सुदी तेरस के दिन, मुक्तिं =
मोक्ष लक्ष्मी को, आप = प्राप्त कर लिया। __ श्लोकार्थ - केवलज्ञानी जिनेश्वर यथोक्त पुण्य क्षेत्रों में विहार करके मात्र
एक मास आयु अवशिष्ट रहने पर सम्मेदशिखर पर आ गये वहाँ सुप्रगफूट का आश्रय लेकर दिव्यध्वनि समेटने वाले उन केवलज्ञानी भगवान् अर्थात् स्नातक मुनिराज ने भादों शुक्ला तेरस के दिन मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त कर ली।