Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
नवमः
= सोलह, स्वप्नान = स्वप्नों को, उषसि = प्रभात बेला में.
ऐक्षत = देखे। श्लोकार्थ – फाल्गुन कृष्णा नवमी को शुभ मूलनक्षत्र में उस रानी ने भाग्य
से सोलह स्वप्नों को प्रातः बेला में देखा। तदन्ते तन्मुखे मत्तसिन्धुरोऽविशदुज्ज्वलः ।
एवं स्वप्नान्निरीक्ष्यैषा नेत्राज्जलमुदधारयत् ।।२३।। अन्वयार्थ -- तदन्ते = स्वप्नदर्शन के अन्त में, तन्मुखे = उस रानी के मुख
में, उज्ज्वलः = उज्ज्वल-धवल, मत्तसिन्धुरः = मदोन्मत्त हाथी, अविशत् = प्रविष्ट हुआ, एवं = इस प्रकार, स्वप्नान = स्वप्नों को, निरीक्ष्य == जल को, उदघाटयत् = उद्घाटित
कर दिया। श्लोकार्थ – सोलहू स्वण देखने के अन्त में उस रानी के मुख में एक
धवल उज्ज्वल मदोन्मत्त हाथी प्रविष्ट हुआ । इस प्रकार स्वप्नों को देखबार इसरानी ने अपने नेत्रों से जलबिन्दु उद्घाटित किये अर्थात् आँसू छलक आये। उत्थिता विस्मिता देवी प्रमाय॑ मुखवारिजम् ।
पत्युः समीपे सा स्वप्नानवादीदतिदुर्लभान् ।।२४।। अन्वयार्थ - उत्थिता = उठी, (च = और), विस्मिता = विस्मय या आश्चर्य
को प्राप्त हुई, सा = उस, देवी = रानी ने, मुखवारिजम् = मुखकमल को, प्रमाद्यं = धोकर, पत्युः = पति के. समीपे = पास में, अतिदुर्लभान् = अत्यधिक दुर्लभ, स्वप्नान् = स्वप्नों
को, अवादीत् = कहा। श्लोकार्थ – स्वप्न देखकर रानी उठ गई विस्मय को प्राप्त उस रानी ने
अपने मुख रूपी कमल को धोकर राजा के पास में उन दुर्लभ
स्वप्नों को कहा। यथोक्त्तफलमेतेषां श्रुत्वा पलिमुखात्सती।
कृतकृत्यमियात्मानममन्यत सा धर्मवत्सला ||२५|| अन्वयार्थ – एतेषां = इन स्वप्नों का. यथोक्तफलं = जैसा कहा गया वैसा