Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य व्रतानि - व्रत, यथा = जैसे, जिनागमे = जिनागम में, उक्तानि
= कहे हुये हैं, तथा = वैसे, अपालयत् = पालन किये। श्लोकार्थ - राजा कनकप्रभ के दीक्षा लेने के बाद उस पद्यनाम राजा ने
श्रावकों के उत्कृष्ट व्रत जैसे जिनागम में कहे गये हैं वैसे
ही उनका पालन किया। निष्पापः पूर्वपुण्यैस्सः राज्यं निष्कण्टकं प्रभुः ।
सम्प्राप्य सर्वकार्याणि न्यायतोऽनुदिनं व्यधात्।।१३।। ___ अन्वयार्थ – पूर्वपुण्यैः - पूर्वसंचित पुण्य कर्मों के उदय से, निष्कण्टकं
== निष्कण्टक, राज्यं = राज्य को, सम्प्राप्य = प्राप्त करके, निष्पापः :- पाप रहित, सः = उस, प्रभुः = राजा ने, अनुदिनं - प्रतिदिन, न्यायतः = न्याय मार्ग से, सर्वकार्याणि = सारे
कार्य, व्यधात् = किये। श्लोकार्थ - पूर्वोपार्जित पुण्य कर्म के उदय से निष्कण्टक राज्य प्राप्त
करके पापाचरण से रहित उस राजा ने प्रतिदिन न्यायमार्ग
से अपने सारे कार्य किये। राजार्हान् निखिलान् भोगाननुभम् परार्थकृत् ।
स्वबाहुवीर्यतश्चक्र निर्भया निखिलाः प्रजाः ।।१४।। अन्वयार्थ - परार्थकृत् = परोपकारी, राजा = उस राजा ने, अनि = अपने
योग्य, निखिलान् = सभी, भोगान् = भोगों को, अनुभूय = भोगकर, स्वबाहुवीर्यतः = अपनी भुजा के बल से, निखिला: = सम्पूर्ण, प्रजाः = प्रजा को. निर्भयाः = भय रहित, चक्रे =
कर दिया। श्लोकार्थ – परोपकारी उस राजा ने अपने योग्य सारे भोगों को भोगकर
आपने बाहु बल से सम्पूर्ण प्रजा को भय रहित कर लिया। एकस्मिन् समये स्वामी श्रीधरो वनमागतः।
तस्मै नेक्षणोत्सवे वनपालेन ज्ञापितः ।।१५।। अन्वयार्थ – एकस्मिन् = एक, समये = समय, जैनेक्षणोत्सवे = जैनमुनि
के दर्शन के लिये उत्सुक, तस्मै = उस राजा के लिये,