Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य = मुझको. धिक् = धिक्कार है. इति = ऐसा, प्रोक्त्वा = कहकर, महावैराग्यं = अत्यधिक दृढ़ वैराग्य को, आपवान् =
प्राप्त हो गया। श्लोकार्थ – उस राजा ने अपने द्वारा पूर्व में मोगे गये इन्द्रिय के विषय
पोषण योग्य भोगों को याद करके शरीरादि समस्त वस्तुओं को अनित्यपने से सोचा और वह विरक्त मन से इसमें व्यर्थ ही समय की बरबादी है - ऐसा मानकर तथा मुझको धिक्कार है - यह कहकर अत्यधिक सुदृढ़ वैराग्य को प्राप्त हो गये। तदा सारस्वतास्तत्रा प्राप्तास्ते देवमुत्तमम् ।
प्रशंशंसुः प्रियवाक्यैः देवर्षिगणहर्षिताः ।।४।। अन्वयार्थ – तदा = तभी अर्थात् राजा को वैराग्य होने पर उसी समय,
तत्रा = वहाँ, सारस्वताः = सारस्वत जाति के लौकान्तिक देव. प्राप्ताः = प्राप्त हुये अर्थात् आये. देवर्षिगणहर्षिताः = देवर्षियों के समूह में हर्षित होते. ते = लौकान्तिक देव. प्रियवाक्यैः = प्रियवचनों से, उत्तम = श्रेष्ठ, देवं = प्रभु की,
प्रशंशंसुः = प्रशंसा की। श्लोकार्थ – राजा को वैराग्य होने पर उसी समय वहाँ सारस्वत जाति
'के लौकान्तिक देव आ गये। देवर्षिगणों से हर्षित उन
लौकान्तिक देवों ने प्रभु की खूब प्रशंसा की। सौधर्मेन्द्रोपि तज्ज्ञात्या देवैस्सह समाययौ । मनोगतिं सदा देवैरूढां तां शिबिकां प्रभुः ।।४६।। समारूह्य तपस्तप्तुं सहेतुकवनं गतः । सहस्रभूमिपैस्साधं सत्रा वेलोपयासकृत ।।४७।। सर्वसिद्धान्नमस्कृत्य केशानालुञ्च्य मुष्टिभिः ।
पञ्चभिर्विधियस अ दीक्षां जग्राह हर्षसः ||४|| अन्वयार्थ – तज्ज्ञात्या - प्रभु के वैराग्य को जानकर, सौधर्मेन्द्रः = सौधर्म
स्वर्ग का इन्द्र, देवैः = देवताओं के. सह = साथ, समाययौ = आ गया, तदा = तब, देवैः = देवताओं द्वारा, ऊढां = लायी गयी, मनोगतिं = मनोगति नामक. तां = उस, शिबिकां =