Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तमः
२०३ हुआ. देवः = देव, देवेन्द्रः = देवेन्द्रों द्वारा भी, वन्दितः = वन्दनीय, (अस्ति = है), शभावसरे = इस शुभ अवसर पर, ते - वे देव, श्रीनिकेतनं = लक्ष्मी के धाम प्रभु की, साक्षात् = प्रत्यक्ष रूप से, रक्षन्ति = रक्षा करते हैं, तदा = तब, इति = ऐसा. श्रुत्वा = सुनकर, सा = उस. राज्ञी = रानी ने,
परमानन्दम् = परम आनंद को, आप = प्राप्त किया। श्लोकार्थ -- स्वप्नों के फल जानने को उत्सुक रानी को राजा ने कहा
हे रानी! तुम्हारे गर्भ में आया हुआ देव इन्द्रों द्वारा भी वंदनीय है। इस समय उसकी रक्षा वे देवगण कर रहे हैं। तब यह
सब सुनकर रानी परम आनन्द को प्राप्त हुई। अदादानानि विप्रेभ्यो वचसा प्रार्थितानि वै । षट्पञ्चाशस्मिता देवकुमार्यों सोधिका. IRRil तद्बोधिकास्तदा तत्र बभूवुर्वावासवाज्ञया ।
सेवा तस्याः प्रतिदिनं चक्रुस्तच्चित्तमोदिनीम् ।।३०।। अन्वयार्थ – (सा= उसने), वै= निश्चित ही, वचसा = वचन से, प्रार्थितानि
= माँगे गये, दानानि = दान योग्य वस्तुयें, विप्रेभ्यः = ब्राह्मणों के लिये, अदात् = दी, तदा = तब, तद्बोधिकाः -- रानी को जगानें वाली, गर्भशोधिकाः = गर्म का शोधन करने वाली, षटपञ्चाशत = छप्पन, मिता = मितभाषिणी. देवकमार्यः - देवकुमारियाँ, तत्र = वहाँ, बभूवुः = उपस्थित हुईं. वासवाज्ञया = इन्द्र की आज्ञा से, (ताः = उन्होंने), तस्याः = रानी की, तच्चितमोदिनी = उसके मन को बहलाने वाली, सेवां
= सेवा को. प्रतिदिनं = प्रत्येक दिन, चक्रुः = किया । श्लोकार्थ - उस रानी ने निश्चित ही ब्राह्मणों के लिये उनके द्वारा वचनों
से मांगी गयीं वस्तुयें दान में दीं। तभी गर्भशोधन करने वाली और रानी को जगाने आदि के लिये छप्पन देवकुमारियां वहाँ उपस्थित हुईं। इन्द्र की आज्ञा से उन्होंने प्रतिदिन रानी के
मन को प्रसन्न रखने वाली सेवा की। ज्येष्ठेऽथ शुक्लद्वादश्यां सा देवी पुण्यसंचयात् । असूत् परमेशानं पुत्रं त्रैभुवनप्रियम् ।।३१।।