Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य किया तथा विधिपूर्वक अष्ट द्रव्यों से पूजा को विस्तारित करके उसने मोहन नामक कूट को प्रणाम किया और वैराग्य । को प्राप्त हो गया। विरक्त राजा ने रतिषेण को राज्य देकर उसी वन में मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली और मुनिधर्म पालन में ही दृढ़भावना वाला होकर उसने तपश्चरण के बल से घातिया कर्मों का नाश करके चौरासी लाख मुनिराजों के साथ निर्वाण
प्राप्त कर लिया। एवं प्रभावकूटोऽसौ मोहनाख्यः प्रवर्णितः ।
भव्याः प्रयत्नतो जीवा दृष्ट्वा तं प्रणमन्तु हि ।।५।। अन्वयार्थ – एवं = इस प्रकार, प्रभावकूट: = प्रभाव वाला कूट, असौ =
सह, मोहनारय्यः = मोहन नामक, पवर्णित: = वर्णित किया गया है, भव्याः = भव्य, जीवाः = जीव, प्रयत्नतः = प्रयत्न से, तं = उस फूट को, दृष्ट्वा = देखकर, हि = अवश्य ही,
प्रणमन्तु = प्रणाम करें। श्लोकार्थ – इस प्रकार के प्रभाव वाला यह कूट मोहनकूट के नाम से
वर्णित हुआ है। भव्य जीव प्रयत्न करके उस कूट को देखकर उसे प्रणाम करें। यो मोहनाभिधमिदं गिरिवर्यकूटम् । भावात्समीक्ष्य परिपूज्य नमेच्च भक्त्या ।। स्वस्याभिलाषपरिलब्धिसुखान्वितोऽस्मात्।
मुक्त्तो भवेत् कठिनसंसृतिपाशबन्धात् ।।६।। अन्वयार्थ - यः = जो, इदं = इस, मोहनाभिधं = मोहन नामक,
गिरिवर्यकूटं = श्रेष्ठ पर्वत सम्मेदशिखर की कूट को, भावात् = भाव से, समीक्ष्य = देखकर, च = और, भक्त्या = भक्ति से, परिपूज्य = अच्छी तरह से पूज कर, नमेत् = नमस्कार करे, (सः = वह), अस्मात् = इस, कठिनसंसृतिपाशबन्धात् - भयंकर संसार रूप फंदे के बन्धान से, स्वस्वाभिलाषपरिलब्धिसुखान्वितः = अपनी अभिलाषा को पाले अर्थात् पूर्ण करने रूप सुख से आनन्दित होता हुआ, मुक्तः = मुक्त, भवेत् = हो जाता है।