Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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____ १६३ श्लोकार्थ - जो इस मोहन नामक सम्मेदशिखर के कूट को भावों से
देखकर और भक्ति से पूजा कर उसे नमस्कार करता है, वह इस कठिन भयंकर संसार रूप फंदे के बन्धन से अपनी अभिलाषा पूर्ण करने रूप सुख से आनन्दित होता हुआ मुक्त हो जाता है।
{इति दीक्षितदेवदत्तकृते सम्मेदशिखरमाहात्म्ये मोहनकूटवर्णनं, तीर्थङ्कर पद्मप्रभवृतान्त समन्वितं नाम
षष्ठोऽध्यायः समाप्तः ।) (इस प्रकार दीक्षित देवदत्त द्वारा रचित सम्मेदशिखरमाहात्म्य में मोहनकूट का वर्णन करने वाला और तीर्थङ्कर पद्मप्रभ
के वृत्त को बताने वाला छठवां अध्याय समाप्त हुआ।