Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षष्ठः
१६१ श्लोकार्थ -- मुनिराज से सम्मेदयात्रा का महत्त्व जानकर वह राजा घर
आ गया और चतुर्विध संघ का सम्मान करता हुआ प्रसन्न मन से एक करोड़ मनुष्यों के साथ सम्मेदशिखर की यात्रा करने के लिये तत्पर हो गया। फिर उसने गीत गाने वालों को, बाजे बजाने वालों को, नाचने वाली और गत्य करने वाली स्त्रियों को साथ में चलने वाला करके तथा नगाड़ों को बजवाते हुये. ऊँचे ध्वज की शोभा से सम्पन्न होते हुये और महान उत्सव मनाते हुये, कुछ ही दिनों में सम्मेदशिखर की यात्रा कर ली। सम्प्राप्तं सर्वतः प्रेम कूटं तं मोहनाभिधम् । अभिवन्द्याष्टधां पूजां विस्तार्य विधिवत्तदा ।।२।। विरक्तो रतिषेणाय राज्यं दत्वा च तदने । मुनिव्रतं स जग्राह तत्रैव दृढ़भावभाक् ।।३।। चतुर्युक्ताशीतिलक्षैः मुनिभिः सह तपोबलात् ।
घातिनां घातनं कृत्वा निर्वाणमगमत्तदा ।।८४|| अन्वयार्थ – सर्वतः = सभी तरफ से, प्रेम = आनन्द, सन्प्राप्तम् = प्राप्त
किया, तदा = तब, विधिवत् = विधानानुसार, अष्टधापूजा = आठ प्रकार के द्रव्यों से युक्त पूजा को, विस्तार्य = विस्तारित करके, तं = उस, मोहनाभिधं = मोहन नामक, कूटं = कूट को, अभिवन्द्य = प्रणाम करके, च = और, विरक्तः = वैराग्य को प्राप्त हुये, सः = उस राजा ने, रतिषेणाय = रतिषेण के लिये, राज्यं = राज्य को, दत्वा = देकर, तद्वने = उसी वन में, मुनिव्रत = मुनिदीक्षा को. जग्राह = ग्रहण कर लिया, तत्रैव = मुनिव्रत पालन में ही, दृढभावभाक् = स्थिर भावना वाला होकर, तपोबलात् = तपश्चरण के बल से, घातिना = घातिकर्मों का, घातनं = घात नाश करके, तदा = तभी, चतुर्युक्ताशीतिलक्षैः = चौरासी लाख, मुनिभिः = मुनिराजों
के, सह = साथ, निर्वाणम् = मोक्ष, अगमत् = प्राप्त कर लिया। श्लोकार्थ – सम्मेदशिखर की यात्रा में राजा ने सब तरफ से आनन्द प्राप्त